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जीवन विज्ञान-जैन विद्या दूसरा चरण
सीधे खड़े रहें। दोनों हाथ साथल से सटे रहें। एड़ियां मिली हुई, पंजे खुले रहें। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर ले जाएं। पंजों पर खड़े होकर पूरे शरीर को तनाव दें। श्वास छोड़ते हुए हाथों को साथल के पास ले आएं और शिथिलता का अनुभव करें। [इस प्रकार तीन आवृत्तियों द्वारा क्रमशः तनाव और शिथिलता की स्थिति का अनुभव कराएं।]
(तीन मिनट) तीसरा चरण
पीठ के बल लेटें। दोनों पैर मिले हुए हों। दोनों हाथों को सिर की ओर फैलाएं। जितना तनाव दे सकें, साथ में मूल बन्ध का प्रयोग करें। फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें। [इस प्रकार तीन आवृत्तियों द्वारा क्रमशः तनाव और शिथिलता की स्थिति का अनुभव कराएं।]
दोनों पैरों के मध्य में एक फुट का फासला रहे। हाथों को शरीर के समानान्तर आधा फुट की दूरी पर फैलाएं। कायोत्सर्ग की मुद्रा में आ जाएं, आंखें बन्द, श्वास मन्द। शरीर को स्थिर रखें। प्रतिमा की भांति अडोल रखें। पूरे कायोत्सर्ग काल तक पूरी स्थिरता। ......... प्रत्येक अवयव में सीसे की भांति भारीपन का अनुभव करें।
(एक मिनट) प्रत्येक अवयव में रुई की भांति हल्केपन का अनुभव करें।
(दो मिनट) चतुर्थ चरण
श्वास मन्द और शांत । दाएं पैर के अंगूठे पर चित्त को केन्द्रित करें। शिथिलता का सुझाव दें-अंगूठे का पूरा भाग शिथिल हो जाए ....... अंगूठा शिथिल हो रहा है। अनुभव करें- अंगूठा शिथिल हो गया है। इसी प्रकार अंगुली, पंजा, तलवा, एडी, टखना, पिण्डली, घुटना, साथल तथा कटिभाग को क्रमशः शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें।
इसी प्रकार बाएं पैर के अंगूठे से कटिभाग तक प्रत्येक अवयव पर चित्त को केन्द्रित करें, शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें।
(सात मिनट)
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