Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 47
________________ 38 जीवन विज्ञान-जैन विद्या अब इस श्वेत रंग का श्वास लें। अनुभव करें- प्रत्येक श्वास के साथ श्वेत रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं। चित्त को ज्योति-केन्द्र पर केन्द्रित करें। वहां पर चमकते हुए श्वेत रंग का ध्यान करें। (कुछ समय बाद) अनुभव करें-ज्योति केन्द्र से श्वेत रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों ओर फैल रहे हैं। पूरा आभामंडल श्वेत रंग के परमाणुओं से भर रहा है। उन्हें देखें, अनुभव करें। ....... अनुभव करें-आवेग और आवेश शांत हो रहे हैं, वासनाएं शांत हो रही हैं, क्रोध शांत हो रहा है। पूर्ण शान्ति मिल रही है। अनुभव करें-पूर्ण शांति मिल रही है, पूर्ण शांति मिल रही है। 2. लयबद्ध दीर्घ श्वास चित्त को दोनों नथुनों के भीतर सन्धि-स्थल पर केन्द्रित करें। गहरालम्बा श्वास लें, गहरा-लम्बा श्वास छोड़ें। श्वास लयबद्ध और सम-ताल करें-5 सैकिण्ड श्वास लेने में, 5 सैकिण्ड भीतर रोकने में, 5 सैकिण्ड बाहर निकालने में और 5 सैकिण्ड बाहर रोकने में लगाएं। इस प्रकार 20 सैकिण्ड में एक श्वासोच्छ्वास तथा एक मिनट में 3 श्वासोच्छ्वास का अभ्यास करें। 5 मिनट से प्रारम्भ कर 20 मिनट तक बढ़ाएं। सारा ध्यान श्वास पर रहे। प्रत्येक श्वास का अनुभव करें। प्रत्येक श्वास को जानते हुए लें, जानते हुए छोड़ें। 3. भावक्रिया एवं मानसिक जागरूकता भावक्रिया (वर्तमान क्षण की प्रेक्षा) भावक्रिया के तीन अर्थ हैं1. वर्तमान में जीना। 2. जानते हुए करना। 3. सतत् अप्रमत्त रहना । जो वर्तमान क्षण का अनुभव करता है, वह सहज ही राग-द्वेष से बच जाता है। यह राग-द्वेष-शून्य वर्तमान क्षण ही संवर है। राग-द्वेष-शून्य वर्तमान क्षण को जीने वाला अतीत में अर्जित कर्म-संस्कार के बंध का निरोध करता है। वर्तमान को जानना और वर्तमान में जीना ही भावक्रिया है। यांत्रिकी जीवन जीना, काल्पनिक जीवन जीना और कल्पना-लोक में उड़ान भरना द्रव्यक्रिया 1- जिसमें केवल शरीर की क्रिया हो, वह द्रव्य क्रिया है। जिसमें शरीर ओर चित्त दोनों की संयुक्त क्रिया हो, वह भाव क्रिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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