Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 28
________________ प्राणायाम 19 अंगुष्ठक के बंद रखें। फिर अंगुष्ठक हटाकर रेचन करें। पुनः उसी नासिका छिद्र से पूरक करें। बाईं नासिका के छिद्र को अंगुष्ठक से बंद करें। बाई नासिका से रेचन करें। पुन: उसी नासिका के पूरक करें। इस प्रकार अनुलोम-विलोम क्रम से समवृत्ति प्राणायाम से भस्त्रिका का क्रम तीन मिनट से पांच मिनट तक करें । श्वास-प्रश्वास की तीव्र गति से, भस्त्रिका के भीतर चमड़ी पर घात प्रत्याघात होने से, वहां की चमड़ी की कोशिकाओं से रक्त भी कभी-कभी बाहर आने लगता है। यदि ऐसा हो तो नासिका में भी गौ के धृत की दो-चार बूंद डालने से नासिका की चमड़ी स्निग्ध हो जाती है जिससे रक्त एवं उष्मा शांत रहती है । भस्त्रिका का प्रयोग ग्रीष्म काल में सीमित ही करें क्योंकि उससे ऊष्मा बढ़ती है । लाभ भस्त्रिका से शक्ति - जागरण, व्याधि-नाश और नाड़ी शोधन होता है। चित्त की निर्मलता बढ़ती है। भूख अच्छी लगती है। अपच, मंदाग्नि के दोष दूर होते हैं । सूक्ष्म भस्त्रिका प्राणायाम सूक्ष्म भस्त्रिका प्राणायाम शक्ति जागरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। ज्ञान केन्द्र व शक्ति केन्द्र पर मन को नियोजित कर सूक्ष्म भस्त्रिका के द्वारा केन्द्रों को जागृत एवं शक्तिशाली बनाया जाता है जिससे शक्ति और ज्ञान आदि को प्रकट होने का अवसर प्राप्त होता है। सूक्ष्म भस्त्रिका में पूरक और रेचन की क्रिया केवल केन्द्रों पर ही की जा सकती है। इसमें श्वास - उच्छ्वास की क्रिया सूक्ष्म एवं त्वरित गति से होती है। विधि - पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि किसी का प्रयोग करें। गर्दन और सीने को सीधा रख शरीर को शिथिल छोड़ दें। धीरे-धीरे पूरक कर श्वास पूरा भरें । बायां हाथ घुटने पर स्थापित करें। दाएं हाथ की अंगुलियों को मोड़कर नाक के आगे रखें। बिना कुंभक किए नाक से तीव्रगति से रेचन करें। रेचन के समय ठहरें नहीं । बलपूर्वक मांसपेशियों को सिकोड़ते हुए श्वास-प्रश्वास करें। श्वासप्रश्वास की टकराहट हाथ की अंगुलियों पर लगेगी। इसके बाद पूरक, आभ्यन्तर कुंभक करें। उसके पश्चात् रेचन द्वारा श्वास को बाहर निकाल दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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