Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ (ख) प्राणायाम 1. भस्त्रिका भस्त्रिका संस्कृत शब्द है । लोहार की घौकनी के लिए प्रयुक्त होता है । इस यंत्र से हवा को तेजी से लेते और छोड़ते है जिससे अग्रि को प्रदीप्त किया जाता है । इसी प्रकार श्वास-प्रश्वास को तेजी से लेना और छोड़ना भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है विधि पद्मासन या सुखासन की मुद्रा में ठहरें । दाहिने हाथ का संपुट बनाएं और नाक के आगे लगाएं जिससे दूसरों पर नाक की हवा और श्लेष्म के छींटे न गिरें । रेचन और पूरक बिना रुके गति से 4 से 10 बार करें। इसके पश्चात् पूरा रेचन करें, कुछ क्षण कुंभक करें, फिर दाएं नथूने से श्वास लें, पूरक करें, कुछ क्षण कुंभक करें, पुन: इसी प्रकार रेचन करें, तीन प्राणायाम से प्रारंभ करें । प्रतिदिन एक-एक बढ़ाकर इक्कीस तक ले जाएं । अधिक करने वालों को शिक्षक का निर्देष लेना चाहिए । भस्त्रिका के सामान्य प्रयोग में बिना कुंभक के जैसे श्वास-प्रश्वास आता है उसे तीव्र गति से लयबद्ध रूप से लोहार की धौंकनी की तरह श्वास प्रश्वास करना होता है । श्वास-प्रश्वास के दस से बीस बार ऐसा करने पर एक बार गहरा लंबा श्वास लेकर कुछ क्षण कुंभक करें । इस प्रकार पहले दिन एक प्राणायाम, फिर धीरे-धीरे ग्यारह प्राणायाम तक बढ़ाएं । केवल श्वास-प्रश्वास करते समय दोनों की सम स्थिति रहनी आवश्यक है । भस्त्रिका का एक प्रयोग अनुलोम-विलोम प्राणायाम क्रम से भी किया जा सकता है। श्वास लेते समय बाएं रंध्र का प्रयोग करें। दाए रंध्र को हाथ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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