Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ 16 1 ओर खिंचता है वहां मत्स्यासन में उसके विपरीत खिंचाव होता है जिससे मेरुदण्ड का संतुलन बनता है। गर्दन और कन्धे में ठहरे हुए दोषों को दूर करता है । स्कन्ध सुदृढ़ और शक्तिशाली बनते हैं । आसन में पेट के भीतरी अवयवों पर दबाव पड़ता है जिससे पाचक रस पर्याप्त मात्रा में बनते हैं और जठराग्नि को प्रदीप्त करते हैं । पेंक्रियाज स्वस्थ बनता है जिससे उसके स्राव बराबर होते हैं । इससे कफ का निवारण होता है । मत्स्यासन में किया गया पद्मासन विशेष रूप से शुक्र और डिम्बग्रंथियों को प्रभावित करता है । जिससे धातुक्षय, स्वप्नदोष आदि दूर होते हैं । इस कारण व्यक्ति कांतिमान और तेजस्वी भासित होने लगता है । सीना इससे फैलता है । फेफड़े के एक-एक कोष्ठ को यह स्वस्थ बनाता है । इससे दमा, श्वास, कास आदि की पीड़ा दूर होती है । गर्दन को पीछे की ओर मोड़ कर रखने से रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर अधिक मात्रा में होता है जिससे स्मरण शक्ति का विकास होता है । थायरायड और पेराथायरायड ग्रंथियों के स्राव में संतुलन होने से शरीर का संतुलित विकास होता है । आंखों को भृकुटि के मध्य स्थिर करने से विचारों की चंचलता दूर होती है । ग्रन्थि तंत्र पर प्रभाव गोनाड्स, एड्रीलन, थायमस, थायरायड, पेराथायरायड, पिट्यूटरी और हाइपोथेलेमस - सभी ग्रंथियों पर यह सम्यक् प्रभाव डालता है । जिससे उनके स्रावों में संतुलन और नियमितता आती है । व्यक्ति की कार्यक्षमता का विकास होता है । जो व्यक्ति अधिक समय तक बैठे-बैठे कुर्सियों पर काम करते हैं उन लोगों की शक्ति को बढ़ाने के लिए और तनाव दूर करने के लिए उपयुक्त आसन I 1 है । जो व्यक्ति मेरुदण्ड को लम्बे समय तक सीधा करके ध्यान नहीं कर सकता है वह इस आसन में गर्दन को सीधा रखकर, लंबे समय तक, लेटे-लेटे ही ध्यान कर सकता है । समय और श्वास यह आसन सर्वांगासन और हलासन का विपरीत आसन है । सर्वांगासन का पूर्ण लाभ मत्स्यासन करने से ही मिलता है । श्वास-प्रश्वास दीर्घ एवं गहरा रखें । जितना समय सर्वांगासन में लगाएं उसका आधा समय इसमें लगाएं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94