Book Title: Jivan Vigyana aur Jain Vidya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ .14 LABER भुमितल की ओर लाते है, तब सीना ,पीठ,कंधे ,पैर,कटि का भाग ,मेरूदंण्ड में विशेष खिंचाव आता हैं, जिससे रक्त का संचार सम्यग् रूप से होता है । इससे स्नायु शक्तिशाली और सुदृढ बनते है । कंठ का स्थान , पेट के विभिन्न अवयव इससे स्वस्थ होते हैं । टोंसिल की गांठो को यह ठीक करता है । सीना, हृदय और कंधे की मांसपेशियो की अच्छी मालीश होने से ये स्वस्थ रहते है । इसमें ठहरे हुए दोष दूर होते है । हलासन से पेट का जैसे-तैसे बढ़ना रुकता है । शरीर में स्फुर्ति और गतिशीलता का विकास होता है । चर्बी दुर होती है जिससे मोटापे में कमी आती हैं । । चुल्लिका ग्रन्थि पर विशेष दबाव पड़ता है । परिणामस्वरूप चयापचय व्यवस्थित होता है । विशुद्धि चक्र को प्रभावित करने से शरीर का संतुलन बनता हैं । मेरूदण्ड की मांसपेशियों के शक्तिशाली बनने से शरीर स्वस्थ रहता है। ग्रथितंत्र पर प्रभाव हलासन से गोनाड्स , एड्रिनल, थायमस, थायरायड और पेराथायरायड विशेष रूप से प्रभावित होती है । हलासन करते समय शरीर की जो आकृति बनती है वह उदर के भीतरी अवयव, गुर्दे, छोटी आंत, बड़ी आंत, पक्वाशय, आमाशय और तनुपट को प्रभावित करती है । कंठमणि, थायरायड, पिच्यूटरी और अग्नाशय, आमाशय को प्रभावित करती है । पिनीयल के हारमोनस संतुलित होने से व्यक्ति को काम, क्रोध, संवेग आदि से छुटकारा मिलता है, ये सहज सन्तुलित होने लगते हैं । सर्वांगासन में जो ग्रन्थियां प्रभावित होती हैं हलासन में भी वे ही ग्रन्थियां हैं। समय और सावधानी आधा मिनट से प्रारंभ करें । प्रति सप्ताह आधा-आधा मिनट बढ़ाएं । तीन मिनट तक अभ्यास को स्थिर बनाएं । आसन करते और वापिस लौटते समय शीघ्रता बिलकुल न करें । उच्च रक्तचाप, दिल के दर्द, स्लिप डिस्क हो गई हो तो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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