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उच्च रक्त चाप एवं दिल की बीमारी वालों के लिए यह आसन वर्जित है । यकृत व तिल्ली के बढ़ जाने पर यह नहीं करना चाहिए ।
लाभ
सर्वांगासन से सम्पूर्ण शरीर में रक्त का संचार एवं शक्ति का प्रादुर्भाव होता है । वृद्धावस्था से पड़ने वाली झूर्रिया ठीक होने लगती है । स्मरणशक्ति विकसित होती है । मसूढ़ों और दांतों की मजबूती बढ़ती है । गर्दन, गला, सीना और उदर के विभिन्न अवयव स्वस्थ होते हैं । विशुद्धि चक्र का विकास, चुल्लिका ग्रन्थि सक्रिय, रक्त शुद्धि, मस्तक में प्रचुर मात्रा में रक्त का परिसंचरण होने से उसकी क्षमता का विकास होता है । टांसिल, दमा और खांसी आदि के लिए यह आसन अत्यन्त उपयोगी है ।
5. हलासन
इस आसन में शरीर की आकृति खेती करने वाले साधन - हल की तरह हो जाती है । इसलिए योगियों ने इसे हलासन की संज्ञा से अभिहित किया है । हलासन सर्वांगासन की श्रृंखला का आसान है । सर्वांगासन की स्थिति के पश्चात् पैरों को सिर की ओर ले जाकर भूमितल से स्पर्श करने पर हलासन निष्पन्न होता है ।
विधी
आसन पर पीठ के बल लेटें। दोनो पैरो को मिलाएं। हाथ शरीर के बराबर फैले रहे । हथेलीयां भुमि को स्पर्श करे । श्वास भरते हुए पैरो को धीरेधीरे ऊपर उठाएं । ९० डिग्री का कोण बनाएं । श्वास छोडें । श्वास लेकर पैरो को सिर की ओर ले जाएं पैर सीधे रहे, अगुलीयां भुमी से स्पर्श करेगी । कमर का हिस्सा मुड़ा रहेगा । अब श्वाश-प्रश्वास सहज रहेगा ।
श्वास ले और धीरे से मूल मुद्रा में आएं कमर व कंधे को भुमि पर लाते हुए 90 डिग्री के कोण पर ले आएं । श्वास का रेचन करें । पुनः श्वास भरे । पैरो को सीधा रखें। रुक-रुककर धीरे-धीरे भुमितल पर आ जाए । श्वास छोड़ें, शरीर को शिथल करें ।
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स्वास्थ पर प्रभाव
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला प्रमुख आसन है । हलासन से दुहरा लाभ पहुंचता है । इसको करते समय सर्वांगासन सहज ही हो जाता है । सर्वांगासन से होने वाले प्रभाव स्वतः इसमें हो जाते है । सर्वांगासन के पश्चात पैरो को जब
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