Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 17
________________ जिनदत्ताख्यान कथाओना आलेखनमा तेना लेखकोनी प्रतिभा वास्तवदर्शी के संप्रदायबद्ध अमुक प्रकारना रूढ विचारवशवर्ती अथवा जे जातना विचारोने अनुसरती होय ते प्रकारनुं ए कथाग्रंथमा वस्तुरचनानुं सौष्ठव के शैथिल्य दृष्टिगोचर थाय छे. आ दृष्टिए विचार करीए तो प्रस्तुत कथा ए बनेली हकीकत नहि पण ते जमानाना जैनसमाजने अनुलक्षीने रचायेली एक नवलिका जेवी कल्पितकथा लागे छे. आ कथा कल्पित होवानुं अनुमान निम्नलिखित हकीकतथी थई शके छ - कथामां मुख्यतः स्त्रीप्राप्तिने लगता चार प्रसंगो आ प्रमाणे छे-जिनदत्त नामनो वणिक्पुत्र (१) देवमंदिरमा पूतळीने जोईने मुग्ध थतां विमलमतिने, (२) पेटमा रहेला सर्पने मारवाथी श्रीमतिने, (३) रूपलावण्य अने साहसथी आकर्षी अंगारवतीने, अने (४) मदोन्मत्त हस्तीने वश करवाथी रतिसुंदरीने परणी, अत्यंत वैभव भोगवी, अंते त्यागी बनी आयुःक्षये मरण पामी देवलोकमां उत्पन्न थाय छे. (१) कन्यालाभना आ चार प्रसंगो पैकी एक के तेथी वधु प्रसंग पण अन्यत्र बीजी जैन कथाओमां अल्पाधिक वर्णनयुक्त मळी आवे छे, (२) धूतनो प्रसंग पण तेवी ज रीते समजी शकाय, (३) पूर्वभवमां दरिद्रावस्थामां मुनिदानादिनो प्रसंग शालिभद्रकथानी साथे तद्दन साम्य धरावे छे. (४) उपरांत आ आखी कथा श्रीभद्रेश्वरसूरिकृत कहावलीमांथी लेवामां आवी होय तेम पण लागे छे. टुंकमा -आ आखी कथा कहावलीमांथी लई पात्रोना नामोमां फेरफार करी तेने रसमय बनाववा तेमां एकाद प्रसंग वधारी रचायेली होई आ कथा काल्पनिक छे, एम कही शकाय. रचनानो हेतु सुपात्रने दान आपवाथी ऐहिक अने आमुष्मिक लाभ थाय छे ए बताववा माटे आ कथा रचवामां आवेली छे. 'जुओ प्रथम कथानी गाथा १४ मी अने बीजी कथानी बीजी गाथा. कथानी उपयोगिता __ भारतीय प्राचीन संस्कृतिना अभ्यास माटे साहित्य, स्थापत्य, लिपिकळा, चित्रकळा विगेरेना जे प्रौढ नमूनाओ अने अवशेषो मळे छे तेमां जैन संस्कृतिनो हिस्सो धारवा करतां य घणो मोटो छे. अने ए निर्माणना मूळमां निष्किचन अनगारी श्रमणोनो श्रम, रसवृत्ति अने उपदेश ए प्रधानवस्तु छे. त्याग -तप-संयमप्रधान जैन श्रमणोना प्रेरणादायी उपदेशने झीली ते ते युगनो जैन गृहस्थवर्ग, जे वस्तुओ पोते करवा जेवी होय ते पोते ज करतो अने जे वस्तुओ जैन श्रमणो द्वारा साध्य होय तेमां ते ते कार्यने लगती दरेक आवश्यकताओंने पूरी पाडतो, जेना परिणामे १ कहावलीमां श्रीशांतिनाथभगवाननी कथामां वीरभद्रनी कथा आवे छे. पूर्वभवमां वीरभद्रनुं नाम जिनदत्त जणावेलु छे. प्रस्तुत कथा अने आ वीरभद्रनी कथाना प्रसंगोमां घणु साम्य छे. आ कथामां जे कई बधारे जणाय छे ते तेनी पश्चाद्भाविता पुरवार करवा उपयुक्त थई शके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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