Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 39
________________ जिनदत्तातप्रसक्तिवर्णना। [८०-८८] तओ जीवदेवेण चिंतियं जूयं अत्थविणासो, ज्यं जस-कित्तिनासणं भणियं । जूयं जीयंतकरं, सरीरखेयावहं जूयं ।। ८०॥ जयपसत्तो पाणी, लोहकसाओवओगजोगाओ। संचिणइ कम्मरासिं, अहोमुहं वच्चए जेण ॥ ८१॥ वंचेइ जणणि-जणए, मित्तद्दोहं करेइ तेयं च । कर-चरण-कन्न-नासाण छेयणं लहइ ज़्यरई ॥ ८२ ॥ जूएण नलसरिच्छा, रायाणो पाविया विवत्तीओ। ता नीयकम्ममेयं, छाइ नीयस्स लोयस्स ॥ ८३॥ एस उण मज्झ पुत्तो, विनायसमत्तसत्थपरमत्थो। जूयम्मि जं पसत्तो, न सुंदरं सबहा एयं ॥ ८४ ॥ अहिमाणधणो एसो, वारिजंतो वि परिभवं गणिही । ता रमउ थेवदिवसे, पच्छा दाहामि उवएसं ॥ ८५ ।। वसणीणं पढमरसे, उवएसो निप्फलो हवइ पायं । रोगम्मि वि परिजिन्ने, कुणइ गुणं ओसहं सहसा ।। ८६ ॥ जाव य जीवदेवो एयं वियप्पमाणो चिट्टइ, ताव जिणयत्तेण अंधियं खेल्लमाणेण हारियाओ सत्त दविणकोडीओ । तओपेसिया भंडागारियसमीवं जायगा। दिनाओ तेण तिनि कोडीओ । पुणो वि पेसिया, ताहे भंडारिएण 'पभूयदववएण सेढी अंबाडिस्सई' त्ति परिभंतचित्तेण किंचि मिसं काऊण निसिद्ध, कहियं तेण जिणयत्तस्स । तेणावि पेसिया विमलमईभंडागारियसमीवं । दिनाओ तेण । तओ सहिएण भणियं- 'सेट्टिपुत्त ! इओ परं धणं काऊण खेल्लियवं, न उण अंगुद्धारीए ।' जओ बप्पेण ताव निवारियमिव लक्खिाइ । भजाए वि नीवी एत्तिया चेव संभावियह त्ति । तओ कीस एत्तिय त्ति चिंतिऊण दविणहारणुप्पन्नमहंतामरिसुद्धमायमाणमाणसेण जयमणोरहरहारूढेण जिणयत्तेण पुणो वि मग्गाविओ विमलमईभंडागारीओ । अवि य जह जहं जायइ हारी, तह तह हिययम्मि वट्ट()इ जयासा। ____हा पावकम्म ! ज़्यय !, विवरीयं तुज्झ माहप्पं ॥ ८७॥ तओ देव्वजोगाओ तेणावि सामिणीभयाओ निसिद्धं । तओ गहिओ माणेण जिणयत्तो, चिंतियं च पयत्तो-कित्तियं मए हारियं जेणेवं निवारिओम्हि ? को वा इच्छानिरोहसंचिएण धणेण गुणो ? त्ति । अवि य इच्छानिरोहदुक्खं, होइ जओ तेण महधणेणालं । सलहिजइ वणवासो, नूणं सच्छंदवित्तीओ ॥ ८८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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