Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 72
________________ [१४-२२] द्वितीयं जिनदत्ताख्यानम् । - ता एसो कस्स वि महापुनवंतस्सेव गेहे पारणयं करेइ । को एत्थ महाकल्लाणभायणो अत्थि ? तो सो वि वंदणीओ भविस्सइ । जेण ऊसरि वावइ जो अबुहु कउ वि जु वि पावेइ । हारइ सो धणु अप्पणउं जो निस्सीलहं देइ ॥ रिसयह विसयविरत्ताहं वयधारहं नियमेण । . दाणु सुपत्तेहिं देहु जणा बहुगुण लब्भइ जेण ॥ १५ तओ वंदिउं गओ वच्छवालो सगिहं । तम्मि य दियहे माहपुन्निमाए भामेइ लोगो पहेणयाइं बम्भणाणं सोतासिणीणं च । आणिया य बहुएहिं जसवतीए सोयासिणीहि मंडया । पेसियो महाकाओ सामिणा मंडओ।।। इओ य तम्मि चेव दिवसे तस्स महाणुभावस्स रिसिणो पारणगदिवसो जाओ । तओ आगमविहाणेण पविट्ठो नयरिं । जाव [प० २.२] पइट्ठो अचुप्पबयाए विसुद्धकम(म्म )सुहपायववीयभूओ वणियकुमारस्स जसमईए घरम्मि । दिट्ठो य पप्फुल्ललोयणेण सिवदेवेण । . अनं च-जेण न किंचि वि कजं तस्स वि घरमागयस्स जे सुयणा । निउणं पहरिसवयणा नियसीसं आसणं देति ॥ १६ पत्ते पि य पाहुणए किं काही दुग्गओ तुरंतो वि। .. अन्धो मलिएहिँ वि लोयणेहिँ अन्धो चिय वराओ । १७ उप्पाइऊण सुयणं सामनधणं हयास ! रे देव!। इच्छा विउला तुच्छा य संपया कीस निम्मविया ॥ .. अहो मे भागधेजाणं अन्ना मे सुहपरिणई ! अहो मे मणुयजम्मस्स सफलया! अहो मे एस महालाभस्स संपायणत्थं खीणो अत्थो ! ता किं बहुणा ? पत्तं जं पावियई । अवि य एयाइँ ता. चिरचिन्तियाइँ तिनि वि कमेण पत्ताई। साहुस्स समागमणं संतं च मणप्पसाओ य ॥ काले थेवं दिजउ माऽकाले बहुं (बहुययं) पि देजाहि । न हु एगदिवसवुट्ठोदएण निप्पजए सस्सं ॥ काले उवणिजंती थेवा वि महोसही जियावेति । अमयरसमीसिएण वि मयस्स किं लावयरसेण ॥ दाणोवभोगपरिवजिएण दवेण किं त्थ किवणस्स। लद्धेण वि नत्थि गुणो पक्ककविद्वेण कायस्स ॥ .. २२ पाई। २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122