Book Title: Jindattakhyana Dwaya Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 44
________________ [ १२२-१३६] जिनदत्ताख्यानम् । अह विमलमई बाला, कीलंती पिययमं अदट्टणं । नूणं गओ त्ति भीया, सहसा मुच्छं समणुपत्ता ॥ १२२ ॥ हा हा ! किमियमयंडे, त्ति जंपिरो ताव सहियणो सबो । सहस चिय संपत्तो, तीए पासं दुहऽकंतो ॥ १२३ ॥ जलसेयण-संवाहण-सिसिरानिलदाणलद्धचेयना । पुट्ठा सहीहि सामिणि !, किं ते बाहइ सरीरम्मि ॥ १२४ ॥ सा वि हु जूहविउत्ता, हरिणि व दिसोदिसि पलोयंती । पभणइ नूण पउत्थो, मह दइओ में पमोत्तूण ॥ १२५ ॥ नहि नहि खणं पि सामिणि !, जुञ्जइ एयं ति बिति सहियाओ। नूणं होज निलुको, कत्थइ परिहासकजेण ॥ १२६ ॥ अहवा पेच्छणयाइसु, अक्खित्तो कत्थई चिरावेइ । इय जंपिरसहियाहिं, सहिया अनिसिउमारद्धा ॥ १२७ ।। अनेसिओ समंता, न य दिट्ठो जाव कत्थई दइओ । ता विरहानलतविया, पलविउमेवं समारद्धा ॥ १२८ ॥ 'छेओ सि धम्मिओ बुद्धिमं च दक्खिन्नकरुणनिलओ सि । ता न हु जुत्तमदोसं, मोत्तुं मं नाह ! एमेव ॥ १२९ ॥ जाणामि न हु अजुत्तं, कुणसि तुम मह अहन्नया एसा । तह वि तुह दीणवच्छल !, करेमि लल्लिं ति मा मुंच ।। १३० ॥ जइ किंचि वि अवरद्धं, दइयय ! अन्नाणओ मए तुज्झ । तं खमसु पाणवल्लह !, खंतिपहाणा जओ सुयणा ॥ १३१ ॥ पियसंगघोटियाई सुहाई अचंतमहुरसायाई । सकलाई ताई मन्ने, विरहकुसुंभोवमाणाई ॥ १३२ ॥ तहा भत्ता महिलाण गई, भत्ता सरणं च जीवियं भत्ता । भत्तारविरहियाओ, वसणसहस्साइँ पाविति ॥ १३३ ॥ इय विविहं पलवंती, लद्धोदंतेहिँ जणणि-जणएहिं । संठविऊणं नीया, नियगेहं दुक्खतविएहि ॥ १३४ ॥ भणिया- 'सुयणु ! तए चिय, विच्छोहो कस्सई कओ होज । पुत्वभवे तेण इमं, संपइ वसणं समुप्पन्नं ॥१३५ ॥ सबो पुवकयाणं, कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य, निमित्तमेत्तं परो होइ ॥ १३६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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