Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 65
________________ जिनदत्तस्य स्वस्थानं प्रतिगमनम् । [३१३-३१३] अण्णोण्णसमुप्पेल्लियपत्तिसमुच्छलियगहिरसिकारों । पासट्ठियदइयाणं, दंसेंतो सेण्णचरियाई ॥३१३ ॥ कत्थइ वेगविसज्जियखलंतनिवडंतअस्सवारोहा । हत्थं परिहत्थेहिं, अण्णयरेहिं धरिजंति ॥ ३१४ ॥ कत्थइ करहारावं, सोऊण तसंति मुद्धमायंगा। मायंगकरुखि( क्खि)त्ता, रहनिवहा कत्थइ पडंति ॥ ३१५ ।। एवं च वच्चमाणो, लंधितो विविहगाम-नगराई । पत्तो थेवदिणेहि, नियनयरं जीवदेवसुओ ॥ ३१६ ॥ वद्धाविओ य जणओ, तुरियं गंतूण केहि वि नरेहि । परिओसियं च दाउं, पञ्चोणीनिग्गओ सो वि ॥३१७ ॥ पिउणो कयप्पणामो, पारद्धो पविसि पुरवरम्मि । नर-नारीनियराणं, संखोहं संजणेमाणो ॥ ३१८॥ कहं ? धावइ का वि अरंजियनयणा, करगयधुसिणअमंडियवयणा । का वि सकंकयमोकलवाली, अवरकरट्ठियकुंडलवाली ॥ ३१९ ॥ उभयकरट्ठियहारमणोहर, धावइ अन्नक पीणपओहर । का वि पहाविय चूडयहत्थी, अवर वि नेउरजुयलविहत्थी॥३२०॥ . अवि यअह एइ एस पत्तो, एत्तो जोएहि देहि मे मग्गं । इय जंपिरतरुणीहि, रुद्धाई भवणसिहराई ॥ ३२१ ॥ धण्णाण इमो दइओ, धन्नो जस्सेरिसाओ भजाओ। पुरजुवइजुवाणाणं, सुर्वति परोप्परुल्लावा ॥ ३२२ ॥ एवं नीसेसनायरजणस्स विम्हयाणंदपूरियाई हिययाई करेमाणो पविट्ठो विविहवंदणमालाउलं रुइरमोत्तियावलीविरायमाणं नियमंदिरं । तओ चिरकालवि. रहविहुरहिययाए समुहमागंतूणमुवगूहिओ जणणीए । तओ वि अणवस्यगलंतबाहबिंदुसंदोहेण जणणिहिययं निबविऊण निवडिओ चलणेसु, तयणुचरो(रा) वहूओ । लद्धा धण्णाउसाणि पविट्ठाणि अभितरं । ताव जिणयत्तेण सम्माणिओ सयणवग्गो-को वि पणामेणं, को वि वायाए, को वि दिट्ठीए, को वि दाणेणं ति । किं बहुणा? काऊण चायभोएहिँ सुंदरं वित्थरेण वद्धणयं । रइया जिणभवणेसुं, विहिणा अट्टाहिया महिमा ॥ ३२३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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