Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 16
________________ प्रस्तावना प्रस्तुत प्रकाशनमा प्राकृत भाषामां रचायेली जिनदत्ताख्यान नामक कथानकनी बे कृतिओनो समावेश थाय छे. आ बन्ने कथाओनी पहेलां पण जिनदत्तविषयक अन्य कृतिओ रचायेली हती. आ हकीकत प्रथम कथानी गाथा ५, ३६४ अने ३६५ तेम ज बीजी कथानी बीजी गाथा उपरथी जाणी शकाय तेम छे. तेम ज आ बन्ने कथाओ पछी पण पूर्णिमापक्षीय श्रीगुणसागरजीना शिष्य श्रीमान् गुणसमुद्र सूरिजीए संयमसिंह गणिना आग्रहथी सं. १४७४ मां जिनदत्तकथा संस्कृता रची छे. उपरांत डेक्कन कॉलेजना संग्रहमांनी भद्राचार्यकृत 'जिनदत्तकथासमुच्चय' नामनी १०३ पानामा लखायेली प्रति 'जैन ग्रंथावली 'ना पत्र २५२ मां नोंधाई छे. तेना नाम उपरथी तेमां विविध जिनदत्तकथाओ होय तेम लागे छे. ते प्रति में जोई नथी तेथी विशेष माहिती आपी शकतो नथी. प्राचीन जैन कथाग्रंथोना रचनार विद्वानोए आंतरजीवननो विकास साधनार आदर्शजीवी स्त्री के पुरुषनी प्रधानता जणाववा माटे,ते ते कथाग्रंथने, ते तेधर्मपुरुष के स्त्रीना नामथी प्रसिद्धि आपी छे. दा. त. समराइञ्चकहा, अरिट्ठनेमिचरिउ, शांतिनाथचरित्र, नम्मयाकहा, सुरसुंदरिचरित्र, पउमसिरिचरिउ वि०. तेम ज उपर जणाव्या प्रमाणेनी धर्मकथाओनो संग्रह जे ग्रंथोमां गूंथ्यो होय तेवा ग्रंथोनो नाममात्रयी ज ख्याल आवे ते सारु ग्रंथकारोए तेने अनुरूप संग्रहसूचक नामथी अंकित फर्या छे. दा. त. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, कहावली, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, कहारयणकोसो विगेरे. नाणपंचमीकहा, होलीरजःपर्वकथा, मौनैकादशीकथा, मेरुत्रयोदशीकथा विगेरे कथाओमां तेना प्रणेताओए तेना नामाभिधानद्वारा साधक अने साधनो निरूपण करेलु छे. प्रस्तुत कथामां मुख्य पुरुष जिनदत्त होई तेना कर्ताए तेने 'जिणदत्तक्खाणं' (जिनदत्वाख्यानम् ) 'जिणयत्तकहा' (जिनदत्तकथा) विगेरे नामोथी प्रसिद्धि आपी छे. कथावस्तु भारतीय कथासाहित्यनुं आलेखन धर्म अने नीतिना शिक्षण उपरांत पोतपोताना संप्रदायनी पुष्टि माटे थयुं छे. आ कथाओ पैकी केटलीक कथाओ वास्तविक बनेली घटनारूप होय छे, ज्यारे तेमांनो मोटो भाग आजनी नवलकथाओ जेवो लागे छे. आ बन्ने य जातनी १ एतां श्रीजिनदत्तभूपतिकथां श्रीपूर्णिमापक्षसन्मुख्यश्रीगुणसागराख्यसुगुरोः शिष्येण सङ्केपतः । वेदोर्वीधरविश्व( १४७४ )वर्षविहितां पुण्यप्रभावाद्भुतां शृण्वन्तु श्रमणामृतं(तां) शिवकृते भव्या भवन्तश्चिरम् ॥ संयमसिंहगणेराग्रहतः श्रीगुणसमुद्रसूरिवरैः । मुग्धानुग्रहबुद्ध्या कृता कथेयं चिरं जीयात् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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