Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 22
________________ प्रस्तावना आठ वर्षनी वये तेने लेखाचार्य पासे शिक्षणमाटे मूकवामां आवे छे. अनुक्रमे ते भाषा अने कळामां प्रावीण्य मेळव्या बाद पितानी प्रेरणाथी निम्रन्थ मुनिद्वारा जैन धर्मना सिद्धांतोनो पण अभ्यास करे छे. विमलमतिपरिणयन ___लग्न करवानी पोतानी अनिच्छाने लीधे अनेक लक्ष्मीपतिओनी कन्याओ मळती होवा छतां जिनदत्त सर्वथा निषेध करतो होवाथी, तेना पिता ते सांसारिक जीवनमां गूंथाय ए माटे जेमना सहवासथी विलासादि तरफ वृत्तिओ ढळे तेवा मित्रोनो जिनदत्तने संपर्क सधावे छे.. जिनदत्त ते मित्रोनी साथे प्रतिदिन विलासजनक स्थळोए फरतां फरतां एक दिवस एक मंदिरना द्वारनी बाजुमां बनावेला स्त्रीना रूपने जोईने, बाजु उभेला मित्रोनो ख्याल पण भूलीने, अत्यंत मुग्ध थई तल्लीन बनी, दृष्टरूपना जेवी सहचरी मेळववानी चिंतामां गरकाव थई गयो. घेर आवीने चिंतामग्न बनी एक बाजु बेठेला जिनदत्तने जोई जिनदास शेठे पूछतां संतोषकारक प्रत्युत्तर न मळतां तेना मित्रो द्वारा सर्व हकीकत जाणी, जिनदत्ते जोयेला ते स्त्रीखरूपना निर्माता कलाकार द्वारा आलेखित स्त्रीस्वरूप, अनुरूप कुमारनी अप्राप्तिथी अद्यावधि कुंवारी रहेली चंपा नगरीवास्तव्य विमल शेठनी पुत्री विमलमतिनुं छे एम जाणी, जिनदत्तनी प्रतिकृति करावी माणसो मारफते चंपा नगरीमा विमलशेठने त्यां मोकली विमलमतिर्नु मागु कयु. विमल शेठे जिनदत्तनुं चित्र जोई प्रसन्न थई आडकतरी रीते विमलमतिनो अभिप्राय जाणी संबंध कबूल कर्यो. जिनदत्त शुभ दिवसे खजनो साथे प्रयाण करी चंपा नगरीमां आवे छे. त्यां महोत्सवपूर्वक लग्न थया पछी विमलमतिनी साथे वसंतपुर आवे छे. जिनदत्तनी द्यूतासक्ति अने परदेशगमन ___ एकदा उपचार करवा छतां पोतानी शिरोवेदना न मटवाथी समय वीताववा माटे, जिनदत्ते द्यूत रमवू शरू कयु. दैववशात् ते जेम हारतो गयो तेम वधारे रमवा मांड्यो. ज्यारे बहु द्रव्य आप्या पछी पिता अने पत्नीना खजानचीओए द्रव्य आपवा निषेध कर्यो त्यारे मानभंगथी जिनदत्तने बहु ज दुःख थयु. घेर आवीने उदास रहे छे. जिनदास अने विमलमतिने खबर पडतां तेओ पोतपोताना खजानचीओने ठपको आपे छे. एक दिवस जिनदास शेठे जिनदत्तने कडं-पुत्र ! लक्ष्मीनी कंइ खोट नथी, बीजा सारे मार्गे यथेष्ट द्रव्य व्यय कर, धूतव्यसन पुरुषार्थबाह्य कहेवाय छे. जिनदत्त 'पिताजी ! हवे ते मार्गे नहिं जाउं' एम कही गुमावेला द्रव्यथी वधु उपार्जन करवाना विचारोथी चिंताग्रस्त बने छे. विमलमति पोताना पतिनी सचिंत अवस्था जोईने 'मारा पिताने त्यां थोडो वखत रहेवाथी तेमनी मानसिक परिस्थिति सुधरशे' एम विचारी जिनदास शेठनी रजा लई जिनदत्तने विनंति करीने साथे लई चंपा नगरी जाय छे. त्यां जिनदत्तने प्रसन्न राखवा विमलमति प्रतिदिन प्रयत्न करे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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