Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 35
________________ जिनदत्तपरिणयनकथा । [५०-४] तत्तो वि संघपूयं, काऊणं सयलसंघपञ्चक्खं । जिणवत्तो ति पवित्तं, बालस्स पइट्ठियं नामं ॥५०॥ किंबहुणा? चंदो व सेयपक्खे, अकलंको वड्डिऊण जिणयत्तो । अट्ठसमापजंते, लेहायरियस्स उवणीओ ॥५१॥ बावत्तरी कलाओ, गहिऊणं निययनामपयडाओ। अच्छइ परियट्टतो, ताओ एगग्गचित्तेण ॥५२॥ तओ.सेट्टिणा चिंतियं बावत्तरीकलापंडिया वि पुरिसा अपंडिया चैव । सबकलाणं पवरं, जे धम्मकलं न याति ॥ ५३ ।। एवं संपहारिऊण नीओ साहुसमी । तओ सोऊण धम्म साहु-सावगसामायारीकुसलो सावगो संवुत्तो। ~ जिनदत्तपरिणयनकथा - ___एत्यंतरे पयच्छंति सेद्विसत्थवाहाइणो नियकन्नयाओ । न ताओ जिणयत्तो परिणेउमिच्छइ । बला वि पयच्छंताणं भइणीओ पडिवाइ । तओ मायामोहवसओ वू(छोटो जीवदेवेण दुल्ललियगोट्ठीए । तओ ते दुल्ललिया सविलासवेसाभवणपेच्छणाईसु तं हिंडाविति । भणंति य - समसुहसुहियं समदुक्खदुक्खियं समसिणेहसब्भावं । एकं पि माणुसं जस्स नत्थि सो किं न पवइओ? ॥५४॥ लडहा मउया छंदाणुवित्तिणी विणयसीलसंपन्ना। पियभासिणी अरोसा, भजा रजं विसेसेइ ॥ ५५ ॥ तहा कहंति अणेगाओ सिंगारकहाओ, दंसंति संविलासिणीयणंगाई ति । अण्णया एगं अहिणवदेवउलं गएण जिणयत्तेण दिट्ठा दुवारदेससंठिया चित्तपुत्तलिया। केरिसा ? भोत्तूण मयणदेहं, मसिणं मुसुमूरिऊण अमएण। सबकलाकुसलेणं, लिहिया नूणं पयावइणा ॥५६ ॥ ईसी(सि)सिहसियकडकियअंगावयवाइँ लीलठाणेहिं । सञ्जीवा इव बाला, नजइ सा लेहयगुणेण ॥ ५७ ॥ जाव य तं जिणयत्तो, एगग्गो पुलइउं समाढत्तो । मयणेण ताव सहस त्ति ताडिओ पंचहिँ सरेहि ॥ ५८॥ १ सविलासिनीजनाङ्गानि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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