Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 34
________________ [३९-४९] जिनदत्ताख्यानम् । तहा-जे पूइंति कयत्था, साहुजणं नियविढत्तदवेण । ताण सुलद्धो जम्मो, सफला ताणं च धणरिद्धी ॥ ३९॥ देविंद-चक्कि केसव-हलहर-मंडलियपमुहरिद्धीओ। जे वियरंति सुपत्ते, तेसिं करपल्लवत्थाओ ॥ ४०॥ एवमुववृहिऊण गयाओ कण्णयाओ । इयरो वि तुट्ठचित्तो पभुत्तो भोयणं । तप्पभिई च सुहजीवियाए जीविऊण आउक्खए मओ समाणो कत्थ उववन्नोति। -जिनदत्तजन्मकथावर्णनाअस्थि सरसपंडुच्छुवाडपउरपुहइवीढे मज्झदेसे धवलमंदिरसुंदरं पि कसिणायारं असुरसासणवजियं पि देवरायसंगयं वसंतपुरं नाम नयरं । जत्थ य सप्पागारे, सप्पागारेहिं वजिया भवणा । मत्तकरिरायवयणा, वयणामयसंदिणो मणुया ॥४१॥ तत्थ य नयरे निवसइ, सेट्ठी नामेण जीवदेवो त्ति । विण्णाण-नाण-धण-रिद्धि-लद्धकित्ती महासत्तो ॥ ४२ ॥ निम्मलसम्मत्तधरो, जीवाइपयत्थसत्थविनाया। जिणइंद-साहु-साहुणिवंदणपूयासमुजुत्तो ॥ ४३ ॥ समरूव-धम्मसीला, जीवजसा नाम भारिया तस्स । उववन्नो कयपुन्नो, तीसे गब्भम्मि सिवदेवो ॥४४॥ तओ सा अब्भाहरइ न उण्हं, न य सीयं छुह-तिसा बि नो सहइ । चंकमइ नेव हुलियं गब्भायासाउ बीहंती ॥ ४५ ॥ एवं सुहं सुहेणं, नवण्ह मासाण साइरेगाणं । संपुनलक्खणधरो, जाओ तणओ जणाणंदो ॥ ४६॥ ताव य पत्ता वियसियवत्ता, अक्खयहत्था सुंदरिसत्था । वजइ तूरं नच्चणिसारं, दिजइ दाणं सबजणाणं ॥ ४७ ॥ तओ वि तुट्ठया सजणा, दुम्मिया दुजणा। तित्तपुरमग्गणं, वित्तयं वद्धणं ॥ ४८॥ वद्धावणयविरामे, जिणवरभवणेसु अट्ठ दिवसाई । महिमा महामहंती, पयट्टिया जीवदेवेण ॥ ४९ ॥ . १ करनाचारम् । २ शीघ्रम् । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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