Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 20
________________ प्रस्तावना प्रतिपरिचय प्रथम कथानी प्रति जैसलमेरना मोटा भंडारनी छे. शुद्धि ठीक ठीक छे. लंबाई पहोळाई ३२४२३ इंचप्रमाण छे. स्थिति सारी छे. आ प्रतिमां बे कृतिओ लखायेली छे. ते आ प्रमाणे (१) पत्र १ थी २५५ सुधीमां मलधारी हेमचंद्रविरचित भवभावनावृत्त्यन्तर्गत-अरिष्टनेमिचरित, (२) पत्र २५६ थी २९४ सुधीमां जिनदत्ताख्यान. संवत् १२४६ मां आ प्रति लखाएली छे. तेनी पुष्पिका कथाना अंतमा साथे ज पत्र ४० मां मूकी छे. बीजी कथानी प्रति पाटणना श्रीहेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमा रहेला श्रीसंघना भंडारनी ताडपत्रीय प्रति छे. घणे स्थळे अशुद्धिओ जोवा मळे छे. अंतनुं ३१ मुं पत्र तथा २७, २८, २९ मळी चार पत्रो नथी. अन्त्य पत्र न होवाथी लेखनकाळ वि. मळी शक्युं नथी. छतां अनुमाने विक्रमना बारमा शतकमां लखायेली निश्चित लागे छे. प्रतिनां पत्र ३० छे. लंबाई पहोळाई १३१४१४ इंच प्रमाण छे. प्रत्येक पत्रनी प्रत्येक पृष्ठिमां वधुमां वधु छ अने ओछामा ओछी चार पंक्तिओ छे. केटलेक स्थळे तो प्रति अति अशुद्ध कहेवाय. बीजी कथानु प्रत्यंतर, मुद्रणकार्य थया पछी मळेलं अने ते अति उपयोगी लागवाथी पाछळ परिशिष्टमां तेना पाठभेदो आप्या छे, अने प्रतिनी संज्ञा 'व' दर्शावी छे. अन्तमा पुष्पिका आ प्रमाणे छे-"जिनदत्ताख्यानं समाप्तम् ॥ संवत् ११८६ अघेह श्रीचित्रकूटे ॥ लिखितेयं माणिभद्रेण यतिना यतिहेतवे साधवे वरनागाय । खस्य च श्रेयकारणम् ॥ मंगलमस्तु वाचकजनानाम् ॥" प्रतिनी लंबाई पहोळाई १०४१३ इंच प्रमाण छे. पत्र संख्या ६९ छे. प्रत्येक पत्रमा पांच पंक्तिओ छे, केटलांक पत्रोमां चार पण छे. उपर प्रमाणे प्रथम कथानी एक प्रति अने बीजी कथानी बे प्रतिओ उपरथी आ प्रकाशन थयु छे. संशोधन प्रस्तुत बन्ने य कथाओनी नकल मात्र ज मारे करवानी छे एम समजी में कॉपी तैयार करी पूज्यपाद, पुरातत्त्वाचार्य मुनिश्री जिनविजयजीने सोंपेली. तेओश्रीए 'एनुं संपादन मारे करवान छ। ए ख्यालथी कॉपी प्रेसमां आपी. हुं दूर प्रदेशमा रहेतो होवाथी गुफो विगेरे नियमित रीते न जोई शक्यो. तेथी सरवाळे शुद्धिपत्रक वध्यु. वाचकोने शुद्धिपत्रकनो उपयोग करवा भारपूर्वक भलामण करूं छु. संक्षिप्त कथासार आदिमां ग्रन्थकार भगवान महावीरने तथा सरखतीने नमस्कार करीने तेम ज पाठकगणगत सज्जन- दुर्जन- पृथक्करण करीने मुनिदानना प्रभावयी जिनदत्त केवी रीते सद्गति पाम्यो ते जणावे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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