Book Title: Jindattakhyana Dwaya Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 31
________________ जिनदत्तपूर्वभवकथावर्णना। [१२-२४ ] दूसिहिइ खलो कवं, सलहिस्सइ सजणो निसग्गेण । ता होउ जारिसं तारिसं पि किं किर पयत्तेण ॥१२॥ इच्चाइओ पसंगो, सप्पासंगम्मि जुञ्जइ पबंधे । मडहं च इमं चरियं, भणामि ता पत्थुयं इण्हि ॥ १३ ॥ मुणिदाणपभावेणं, कल्लाणपरंपरं लहेऊण । जह संपत्तो सुगई, जिणयत्तो तह निसामेह ॥ १४ ॥ छ । ~ जिनदत्तपूर्वभवकथावर्णनाअत्थि इह जंबुद्दी(दी)वे, दाहिणभरहद्धमज्झखंडम्मि । देसो अवंतिनामो, गामागरपट्टणाइन्नो ॥१५॥ जत्थ य तुंगसुवंसा, गिरिणो सुयण व थिरसहावा य । रमणीओ व सरीओ, फुरंतकडयालयच्छीओ॥ १६ ॥ दुभिक्ख-चोर-मारी-भयमवगासं न जत्थ पाइ । कमलकोसे व महुयरपडलं दूरेण तो भमइ ॥ १७ ॥ तम्मि य वियब्भ(यभय?)पहुणा, निवेसियं गेण्हिऊण पजोयं । वचंतेण सदेसं, अत्थि पुरं दसपुरं नाम ॥ १८ ॥ बहुविच्छित्तिविणिम्मियमंदिर-पासायसेणिकयसोहं । उजाणवाविसंठियकलहंसुल्लावसुइसुहयं ॥ १९॥ पायारोरमणीओ, रमणीओ भूरिभासुरमणीओ। विमलं चिय सुयनाणं, सुयनाणं जत्थ सुयनाणं ॥ २० ॥ तं पुण अवंतिनाहो, विक्कमवम्मो त्ति पायडो तइया । दरियारिवारमहणो, भुंजेइ पयावगुणकलिओ ॥२१॥ अह तत्थ पुरे निवसइ, विण्णाण-कलाकलावसंपन्नो। सिवधणनामो वणिओ, णिग्घिट्टो वणियकिरियासु ॥ २२ ॥ भजा य जसमई से, समजोवणरुवसीलसंपन्ना । पुबज्जियपुग्नफलं, दोनि वि ताई अणुहवंति ॥ २३ ॥ जाओ य ताण पुत्तो, अवचविच्छड्डकोट्टियमईणं । सिवदेवो से नामं, पइट्ठियं तेहिं तुडेहिं ॥ २४ ॥ तओ जाव सो अट्टवरिसो संवुत्तो ताव खणभंगुरयाए सरीरस्स, चंचलयाए जीवियस्स, आसावल्लिविच्छेयदच्छत्तणओ कयंतस्स, महईए सिरवेणाए सममिभूओ पाविओ पंचत्तं सिवधणो । जसमई तविओयानलपलित्तहियया विविहकरुणपलावपरायणा तस्स मयकिच्चाई काऊण चिंतिय() पयत्ता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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