Book Title: Jindattakhyana Dwaya Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 30
________________ जिनदत्ताख्यानकम्। नमो वीतरागाय । जयउ विणिजियदुजयदुरंतकंदप्पदप्पमाहप्पो । दुदृट्टकम्मदोघट्टकेसरी जिणवरो वीरो ॥१॥ काऊण पंचपरमेडिसंथवं तिविहकरणजोएण । अण्णाणतिमिरहरिणिं, नमिऊण सरस्सई सिरसा ॥२॥ वोच्छं सूरिपरंपरसमागयं सुप्पसन्नबन्धेण । जिणयत्तचरियभित्ति, धम्मकहं तं निसामेह ॥३॥ धम्मो चउप्पयारो, दाणाई जिणमयम्मि सुपसिद्धो । भनिही (बीहि ) जहावसरं, भवियाणुग्गहकए एत्थ ॥ ४ ॥ सुपसिद्धं चरियमिणं, तह वि हु वोच्छामि जेण सुयणाणं । चरियाणुकित्तणेणं, सुकयं अणुमोइयं होइ ॥५॥ भणियं च चउसरणगमणदुक्कडगरिहा सुकडाणुमोयणं चेव । एस गणो अणवरयं, कायवो कुसलहेउ त्ति ॥६॥ जी(जा)वीह विरह-संगम-सिंगाराईण वन्त्रणा का वि । तं मोहविलसियं ति य, दुकडगरिहा मुणेयवा ॥७॥ . अलं वित्थरेण ।। केसिंचि पियं गजं, पजं केसिंचि वल्लहं होइ । विरएमि गज-पजं, तम्हा मज्झत्थवित्तीए ॥८॥ बीहेमि दुजणाणं, सुयणाण वि तह य सुट्ट बीहामि । एगे दूसिंति गुणे, इयरे दोसे वि छायंति ॥ ९॥ अओ दुवेण्हं पि पसायणत्थं आसीवायं देमि- .. कवत्थचिंतणपरो, जं लहइ कई मणम्मि सुहदुक्खं । तं लहउ सजणो दुजणो उ लद्धे जमत्थम्मि ॥ १० ॥ अहवा अत्थेण व सत्थेण व, परस्स तोसो बुहेण कायो । दोसग्गहणेण खलो, जइ तूसइ तूसउ वराओ ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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