Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 21
________________ जिनदत्ताख्यान जिनदत्तनो पूर्वभव विक्रमवर्म शासित अवंती देशमां पुरा काळमां प्रधोतराजविजेता विदर्भ ( वीतभय )ना राजाए [उदायने] वसावेला* देशपुर नगरमां शिवधन नामनो वणिक् पोतानी यशोमती नामक पत्नीनी साथे रहे छे. काळक्रमे तेमने पुत्र थतां तेनुं नाम शिवदेव पाडे छे. शिवदेव आठ वर्षनो थतां शिवधन मरण पामे छे. तेना मरण पछी अल्प समयमा ज समृद्धिनो पण नाश थतां यशोमती पोतानी भूतकाळनी जाहोजलालीनुं स्मरण करी, ज्यां परिचित माणसो न होय त्यां दासकर्म करवानो विचार करी, पुत्रने साधे लई, उज्जयिनीमां एक कुलीन वणिकूने त्यां काम करवा माटे रहे छे. शिवदेव रोज वाछरडांने जंगलमां चराववा लई जाय छे. एक दिवस वाछरडां चराववा गयेला शिवदेवे धर्मध्यानमां स्थित एक तपखीने जोती बहुमान ऊपजवाथी तेमनी वंदनादिपूर्वक पर्युपासना करी. घेर आवी पोतानी माताने पण आ वात करी. ' ते तपस्वी धन्य छे, तेमने अन्न - पानादि आपनार पण धन्य छे, पुण्यहीन आपणे तो तप के दान बेमांथी एक पण करी शकतां नथी, तो वत्स । ते तपस्वीनुं रोज वंदन करीने पण तुं आत्माने कृतार्थ करजे' आवी मातानी शीख मेळवी शिवदेव ते तपखीनी वंदनादि उपासना करे छे, अने विचारे छे के-आ मुनि म्हारे घेर आहार ले तो ठीक. अन्यदा माघ पूर्णिमाना तहेवारने दिवसे, एक बीजाने त्यां, खाद्य पदार्थोंनी भेट आपवानी काळी प्रथा होवाथी विधवा होवाना कारणे यशोमतीने त्यां पण खोराकनी वानीओ आवे छे. शिवदेव जमवा बेसे छे तेवामां जे तपखीनी ते नित्य वंदना पर्युपासना करतो हतो ते तपखी त्यां आवतां भावुक शिवदेव अति प्रसन्न थई अत्यंत भक्तिभावपूर्वक मुनिने आहार आपे छे. आ समये खाद्य वस्तुओ आपवा आवेली चार बालाओ शिवदेवनो भक्तिभाव जोई 'वयस्य ! आवा सुपात्रने दान आपीने तुं धन्य थयो छे' इत्यादि वचनोथी शिवदेवनी प्रशंसा करीने स्वस्थाने जाय छे. शिवदेव पण प्रसन्न चित्ते भोजन करे छे. क्ष्यार पछी शिवदेव पोतानी जींदगी सुखे गाळी आयुष्य पूर्ण थतां मरण पामे छे. जिनदत्तनो जन्म अने बाल्य - युवावस्था मध्य देशमां वसंतपुर नगरमां जैनधर्ममां स्थित जीवदेव नामे श्रेष्ठी रहे छे. तेमने जीवयशा नामे पत्नी छे. शिवदेवनो जीव जीवयशानी कुक्षीए अवतरे छे. जीवदेव शेठ पोतानी समृद्धिने अनुरूप वधामणुं संघपूजा तथा मंदिरोमां उत्सव विगेरे करावी तेनुं नाम जिनदत्त पांडे छे. १ बीजी कथामां विक्रमवर्मनी राणी पद्मश्री नामनी जणावी छे. ** आ बे फुल्लीना मध्यमां रहेली हकीकत बीजी कथामां नथी. २ आ स्थळे बीजी कथामां पद्मपुर पत्तन जणावी आगळ ( मुद्रितप्रत्र - ७१ मां ) दशपुर नगर जणावे छे. आ उपरथी को तो पद्मपुर अने दशपुर अभिन्न छे अथवा बीजी कथाना कर्ता प्रथम पद्मपुर लखी अंत सुधी तेनो संबंध जाळवी शक्या नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122