Book Title: Jindattakhyana Dwaya Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 19
________________ ६ कथागत उपयोगी शब्दो विगेरे आडतिगा ? आडत्तिया ( = आडतीया. सिम्वलिगा }} जिनदत्ताख्यान समलिगा • सुंल्ली, करंडिओ. सामलिगा वक्खरो = वाखरो. मइरं = बेडामूल्य. पत्र १७ - २४- ५१-५६ पत्र २३-५४-५५ पत्र २४ -५६ पत्र २६ टिप्पणी त्रीजी . एकाद प्रसंगे छंदोभंग न थाय ते माटे प्राचीन छान्दसिक नियमने अनुसारे ' वराई = वराकी' ने बदले 'वरई' शब्द मूक्यो छे. जुओ पत्र ८ गाथा ६८ मी. = Jain Education International विदर्भराजे ( वीतभयनगरना स्वामीए ) दशपुर ( आधुनिक मंदसोर) वसाव्यं हर्तु. जुओ पत्र २ गाथा १८ मी. बन्नेय कथाओमां प्राकृत तथा अपभ्रंश सुभाषितोनो संग्रह आकर्षक छे. ग्रंथकार अने समय प्रथम कथाना प्रणेता आचार्य श्रीसुमतिसूरि छे. तेमनो विशिष्ट परिचय के रचनासमयने जाणवानुं साधन कथाना अंतनी प्रशस्ति सिवाय बीजं कशुं ज जाणवामां आव्युं नथी. दशवैकालिकटीकाना कर्ता श्रीसुमतिसूरि अने आ सुमतिसूरि अभिन्न नथी. प्रस्तुत आख्यानना प्रणेता आचार्य श्रीसुमतिसूरि पाडिच्छय गच्छीय आचार्य श्रीसर्वदेवसूरिना शिष्य छे. पाडिच्छय गच्छ विषेनी विशेष माहिती ते अंगेना साधनना अभावे आपवी शक्य नथी. पाडिच्छय गच्छनी उत्पत्तिनुं कोई स्वतंत्र महत्त्वनुं कारण नथी लागतुं परंतु आ गच्छना आचार्योए ज्ञानादिनी वृद्धिनिमित्ते बीजा गच्छना आचार्योनुं गुरुत्व प्रतीच्छेल = स्वीकारेल होई तेमने पाडिच्छयगच्छीय कहेवामां आवता होवा जोईए एम मने लागे छे. आ सिवाय आ विषेनी बीजी कशी हकीकत मारी सामे हाजर नथी. बीजी कथाना ग्रंथकारनं नाम प्रशस्ति आदि नहिं होवाथी जाणी शकायुं नथी. छत प्रथम कथा करतां बीजी कथानी रचना पहेलां थई होय तेम लागे छे. आ कथानी एक प्रति मुद्रण थया पछी पूज्यपाद साक्षरवर्य श्री पुण्यविजयजी द्वारा वडोदराना श्रीआत्मानंद ज्ञानमंदिरमांथी मळी आवी. जे प्रति उपरथी मुद्रण थयुं छे ते प्रति अशुद्ध; उपरांत केटलेक स्थळे ताडपत्रो खरी जवाथी त्रुटित पाठवाळी; तेम ज अंतमां बे त्रण पत्रोना अभावे अपूर्ण होवाथी वडोदरावाळी प्रतिनो उपयोग करो आवश्यक बन्यो. ग्रंथना अंते वडोदरावाली प्रतिना पाठोनी नोंध आपी छे. १ नीया लोवमभूया वि आणिया दीह-बिंदु-दुब्भावा । अत्थं गर्मेति तं चिय जो तेसिं पुव्वमेवासी ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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