Book Title: Jindattakhyana Dwaya
Author(s): Sumtisuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 15
________________ किञ्चित् प्रास्ताविक अने शब्दप्रयोगो मळी शके तेम छे. समयाभावने लीधे ए विषे विशेष विवेचन करवातुं मारा माटे शक्य नथी बन्यु. ____ आ बंने कृतिओनी प्रतिओ मात्र ताडपत्र उपर ज लखेली जोवामां आवी छे जेनो परिचय संपादक पंडिते आपेलो छे. प्राचीन प्रतिओना आकार-प्रकारादिनी कल्पना अने स्मृति बनी रहे ते दृष्टिथी एना अन्तिम पत्रोनां हाफटोन ब्लॉक बनावी तेनां चित्रो पण आ साथे आपवामां आव्यां छे. भारतीय विद्या भवन, बंबई. । ज्येष्ठ शुक्रा १ सं. २००९. १२, ६, १९५३ ॥ - मुनि जिनविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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