Book Title: Jain Vidya 24 Author(s): Kamalchand Sogani & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 8
________________ सम्पादकीय “आचार्य प्रभाचन्द्र न्याय और व्याकरण के क्षेत्र में बहुचर्चित विद्वान रहे हैं। ये धारा नगरी के निवासी माने जाते हैं। " "आचार्य प्रभाचन्द्र का समय ईस्वी सन् 980 से 1065 तक होना माना है । " “आचार्य प्रभाचन्द्र विचक्षण बुद्धि के धनी थे । चहुँमुखी ज्ञान के बल पर ही आपने अनेक विषयों में अपनी लेखनी चलाई। चारों अनुयोगों में आपकी कृतियाँ पाई जाती हैं। " “प्रथमानुयोग में - महापुराण - टिप्पणी, गद्य कथाकोष । करणानुयोग में - तत्त्वार्थवृत्ति पद- विवरण, रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका । द्रव्यानुयोग में - समयसार - टीका, प्रवचनसार - टीका, लघु द्रव्यसंग्रह वृत्ति, समाधितंत्रटीका, आत्मानुशासन - टीका । न्याय के विषय में - प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र । व्याकरण में - शब्दाम्भोजभास्कर, शाकटायन न्यास । इन रचनाओं को देखने से जान पड़ता है कि प्रभाचन्द ने बहुमुखी ज्ञान प्राप्त किया था।" “इसप्रकार आचार्य प्रभाचन्द्र के द्वारा रचित तेरह टीका ग्रन्थ एवं दो ग्रन्थ स्वोपज्ञ हैं। अर्थात् 'न्यायकुमुदचन्द्र' और 'गद्य कथाकोश' ये दो मौलिक रचनाएँ हैं, शेष तेरह टीका- - ग्रन्थ हैं। 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' टीका ग्रन्थ होते हुए भी मौलिक से कम नहीं। " “प्रमेयकमलमार्तण्ड' की रचना प्रभाचन्द्र ने धारानगरी में निवास करते हुए श्री भोजदेव के राज्य में समस्त प्रमाण- प्रमेय के स्वरूप को समझनेवाले ग्रन्थ 'परीक्षामुख' की टीकास्वरूप की थी। 'परीक्षामुख' आचार्य माणिक्यनन्दि (लगभग 950 -1050 ई.) का न्यायविषयक सूत्र ग्रन्थ है। प्रभाचन्द्र कृत उक्त टीका 12,000 श्लोक - प्रमाण बताई जाती है।" "आचार्य प्रभाचन्द्र ने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' में अनेक सम्बद्ध विषयों पर विशद विवेचन किया है। उनमें निम्न विषय पठनीय / मननीय हैं - भूत चैतन्यवाद, सर्वज्ञत्व-विचार, ईश्वर कर्तृत्व विचार, मोक्षस्वरूप विचार, केवलिभुक्ति विचार, स्त्रीमुक्ति विचार, वेदअपौरुषेयत्व विचार, नैयायिक - अभिमत सामान्य-स्वरूप विचार, ब्राह्मणत्व जातिनिरास, क्षणभंगवाद, वैशेषिक-अभिमत, आत्मद्रव्य विचार, जय-पराजय व्यवस्था आदि । " (vii)Page Navigation
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