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खुले शब्दो मे कहते. है . कि उन्होने यह कार्य कर्तव्यपालन एव आत्म सन्तोप के लिए ही किया अत उनके सम्बन्ध मे हमारे लिए इससे अधिक कुछ भी लिखना एक अनुचित ही चर्चा होगी।
जहाँ तक ग्रन्थमाला के सज्ञा करण की वात रही है कार्य समिति की भावना इसके साथ किसी ऐसे महापुरुप का नाम जोडने की थी कि जिसने योगत्रयसे जैन सस्कृति की सेवा एव प्रचार का कार्य किया हो, ऐसे नामो मे सर्वप्रथम प्रात स्मरणीय गुरु गोपालदासजी बरैया का नाम ही रहा है त - उसके नाम से ही ग्रन्थमाला का सज्ञा करण किया गया है ।। जहां तक ग्रन्थमाला से प्रकाशित पुस्तको की बात है हम इनको भेंट स्वरूप सिर्फ त्यागी वर्ग एव सेवक समाज के आजीवन सदस्य एव सरक्षक सदस्यो को ही दे सकेंगे।
यह कार्य इसलिए कि जिनकी सहायता से पुस्तको का प्रकाशन होगा, उसको पुस्तको को बिना मूल्य वितरण करके उसी प्रकाशन के साथ समाप्त न किया जाय ।, किन्तु जो भी पुस्तकें प्रकाशित होगी उनके विक्री मूल्य से सहायता को सुरक्षित किया जाय-जिससे इस ही पुस्तक के प्रकाशन मे दूसरी सहायता की जरूरत न पडे । पुस्तको का हिसाव नियमित रखा जायेगा जिससे कि भेट मे दी जाने वाली या विक्री से दी जाने वाली प्रत्येक पुस्तक की जाँच की जा सके।