Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 14
________________ १४ जैन श्रमण संघ का इतिहास COMID-BIRHAIRTHDINDORIDADIHIRIDHIIIIIAHINDI111DCOLITD dirtD OTHINDILHIINDAGITATIO-III- HIDAMADAN- को एक कोटि में रख दिया । इस समानता के कारण निर्गन्थ अथवा जैनों के कर्म सिद्धांत का वर्णन इन विद्वानों को यह भ्रम हुआ कि जैन धर्म बौद्ध किया है। धर्म की एक शाखा है ऊपरी समानता को देखकर (४) अंगुतर निकाय में जैनश्रावकों का उल्लेख और दोनों धर्मों के मौलिक भेद की उपेक्षा करके इन पाया जाता है और उनके धार्मिक आधार का भी विद्वानों ने यह गलत अनुमान बांधा था। विस्तृत वर्णन मिलता है। जर्मनी के प्रसिद्ध प्रोफेसर हर्मन जेकोबी ने जैन (५) समन्नफल सून्न में बौद्धों ने एक भूल को धर्म और बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों की बहुत छानवीन है। उन्होंने लिखा है कि महावीर ने जैनधर्म के चार की है और इस विषय पर बहुत अच्छा प्रकाश डाला महाव्रतों का प्रतिपादन किया किन्तु ये चार महाव्रत है। इस महापण्डित ने अकाट्य प्रमाणों से यह सिद्ध महावीर से २५० वर्ष पार्श्वनाथ के समय माने जाते कर दिया है कि जैनधर्म की उत्पत्ति न तो महार थे। यह भूल बड़े महत्व की है क्योंकि इससे जैनियों के समय में और न पार्श्वनाथ के समय में हुई किंतु के उत्तराध्ययन सूत्र के तेवीसवें (२३) अध्ययन की इससे भी बहुत पहले भारत वर्ष के अति प्राचीन काल यह बात सिद्ध हो जाती है कि तेवीसवें तीर्थङ्कर में यह अपनी हस्ती होने का दावा रखता है। पार्श्वनाथ के अनुयायी महावीर के समय में विद्यमान __जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा नहीं है, बल्कि एक थे। स्वतन्त्र धर्म है। इस बात को सिद्ध करने के लिए (६) बौद्ध ने अपने सूत्रों में कई जगह जैनों को अध्यापक जेकोबी ने बौद्ध के धर्मग्रन्थों में जैनों का अपना प्रतिस्पर्धी माना है किंतु कहीं भी जैनधर्म को और उनके सिद्धान्तों का जो उल्लेख पाया जाता है बौद्धधर्म की शाखा या नवस्थापित नहीं लिखा। उसका दिग्दर्शन कराया है और बड़ी योग्यता के (७) मंखलिलपुत्र गोशालक महावीर का शिष्य साथ यह सिद्ध कर दिया है कि जैनधर्म बौद्धधर्म से था परन्तु बाद में वह एक नवीन सम्प्रदाय का प्रवाक प्राचीन है । अब यहाँ यह दिग्दर्शन करा देना उचित बन गया था। इसी गोशालक और उसके सिद्धांतों है कि बौद्धों के धर्मशास्त्रों में कहाँ २ जैनों का का बौद्ध धर्म के सूत्रों में कई स्थानों पर उल्लेख बल्लेख पाया जाता है: मिलता है। ___ (१) मज्झिमनिकाय में लिखा है कि महावीर के समीर (6) बौद्धों ने महावीर के सुशिष्य सुधर्माचार्य उपाली नामक श्रावक ने बद्धदेव के साथ शास्त्रार्थ के गोत्र का और महावीर के निर्वाण स्थान का भी किया था। उल्लेख किया है । इत्यादि २ (२) महावगग के छठे अध्याय में लिखा है कि प्राफेसर जैकोबी महोदय ने विश्वधर्म काँग्रेस सीह नामक श्रावक ने जो कि महावीर का शिष्य में अपने भाषण का उपसंहार करते हुए कहा था कि:था, बुद्धदेव के साथ भेंट को थी। On cinclusion let me assert my conbichon (३ अगुतर निकाय के तृतीय अध्याय के ७४ thar Jaiasm is an original system quite distinct वें सत्र में वैशाली के एक विद्वान् राजकुमार अभय ने and indePendent from all others and that the Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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