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कैकेयी को वरदान
इस घटना के पश्चात् शुभमति ने राजा दशरथ के साथ राजकन्या कैकेयी का विधिवत् ब्याह किया। दशरथ ने नवोढा कैकेयी से कहा- “देवी ! आपके सारथ्य के कारण आज हमारा विजय संभव बन सका । हम आपसे प्रसन्न हैं - अतः आपका मनचाहा वरदान माँग लीजिए। उसे मैं पूर्ण करूँगा।" कैकेयी ने कहा, "इस समय वरदान माँगने की आवश्यकता नहीं है। इसे धरोहर के रूप में रखिये, योग्य समय आने पर उसे अवश्य माँगूगी, तब उसे पूर्ण कीजियेगा।"
दशरथ के प्रखर पराक्रम ने संपूर्ण शत्रुसेना को अंकित बनाया। सेना समेत वे राजगृही की और पधारें। इसके पश्चात् उन्होंने मगध नरेश को परास्त किया और राजगृही नगरी में अपना आवास बनाया।
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फिर दशरथ ने दूत भिजवाकर अयोध्या नगरी से अपनी तीनों रानियों को बुलवाया। दूत का संदेश पाते ही कौशल्यादि समस्त रानियाँ पहले तो आश्चर्यचकित बनी, क्योंकि उनके अस्तित्व पर लगा हुआ ग्रहण अचानक समाप्त हुआ और उसका स्थान लिया असीम हर्षसागर ने ! वे सब सत्वर राजगृही पधारी। मन में प्रखर इच्छा होते हुए भी वे अयोध्या में पुनः नहीं आये, क्योंकि रावण की भयानक छाया अभी भी उनके मन
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