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लव-कुश का पितृमिलन
आनंद कीजिये ! इतने वर्षों के पश्चात् आप अपने पुत्रों से मिले है व उनसे पराभूत हुए हैं - यह तो दोहरी खुशी का अवसर है।"
इतने में आकाश मार्ग से नारदमुनि युद्धभूमि पर आये। उन्होंने अन्यमनस्क राम-लक्ष्मण को देखकर कहा, “आप दोनों हर्ष के स्थानपर विषाद क्यों कर रहे हैं ? 'पुत्रादिच्छेत् पराजयम्' पुत्र से पराजाय की इच्छा रखनी चाहिये । पुत्र, पिता से अधिक पराक्रमी होना चाहिये। ये दो कुमार आप ही के वंशज हैं। ये सीतापुत्र लव व कुश हैं।
आश्चर्य, लज्जा, खेद, व हर्ष इन सभी अनुभूतियों का तीव्रतम अनुभव एक साथ करनेवाले राम बेहोश हो गए। शीतल चंदनजल के छिटके जाने पर उन्हें होश आया, वे लक्ष्मणसमेत अपने पुत्रों को आलिंगन देने के लिए चलने लगे। उन्हें अपनी दिशा में आते हुए देखकर लव-कुश अपने रथों से नीचे उतरे व नतमस्तक होकर अपने पिता एवं काका को प्रणाम किया। राम-लक्ष्मण ने उन्हें आलिंगन दिया।
युद्ध का निमित्त बनाकर आपके दर्शन करने आये हैं। इस सुदर्शन चक्र की निष्फलता ही इनका आपके पुत्र होने का प्रमाण है । आपके पूर्वज भरत ने यह चक्र बाहुबली पर छोडा था, तब वह निष्फल हुआ था। समानवंशी शत्रु पर यह चक्र चलता नहीं है। अब
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