________________
Jain Education International
anang
छठ्ठे भव में पुनः देवलोक जाकर देव बनेंगे।
वहाँ से च्यवन प्राप्त कर पुनः विजयापुरी में कुमारवर्ति राजा व लक्ष्मीरानी के जयकांत व जयप्रभ नाम के राजकुमार, जिनोक्त धर्म का पालनकर मृत्यु को प्राप्त करेंगे।
मरणोपरांत छठ्ठे देवलोक में देव होंगे।
तब सीतेन्द्र का जीव बारहवें देवलोक से च्यवनकर भरतक्षेत्र में जन्म लेगा । वहाँ पर सीतेंद्र, सर्वरत्नमति चक्रवर्ती बनेंगे। देवलोक से लक्ष्मणजी व रावण के जीव च्यवन कर चक्रवर्ती बने सीताजी के पुत्र होंगे। उसमें रावण के जीव का नाम इन्द्रायुध और लक्ष्मण के जीव का नाम मेघरथ रहेगा। कर्म की गति कितनी विचित्र है। सीता का अपहरण करेनवाला रावण दसवें भव में सीता का पुत्र होगा। चक्रवर्ती सीताजी का जीव दीक्षा लेकर अनुत्तर देवलोक में जाएगा।
उसके पश्चात् इंद्रायुध जो रावण का जीव है, वह तीन श्रेष्ठ भव पार कर तीर्थंकर नाम कर्म बांधेगा। उसके बाद रावण का जीव तीर्थंकर बनेगा। सीताजी का जीव वैजयन्त से जन्म लेकर तीर्थकर रावण का गणधर बनेगा और अंत में दोनों मोक्ष प्राप्त करेंगे।
लक्ष्मणजी के शेष भव इस प्रकार हैं
(१) लक्ष्मण का जीव मेघरथ अपना आयुष्य पूर्ण करके अनेक शुभगति प्राप्त करेगा ।
(२) उसके पश्चात् पुष्करवर द्वीप में पूर्व महाविदेह के आभूषण रूप रत्नचित्रा नगरी में वे तीर्थंकर होंगे व मोक्ष प्राप्त करेंगे।
केवलज्ञानी रामर्षि ने पच्चीस वर्ष विहार कर मरणोपरांत श्री सिद्धगिरि महातीर्थ पर ३ करोड मुनियों के साथ मोक्ष पाया।
वाचकमित्रों ! रामायण एक विशाल महासागर है। हमने उसका मंथन किया व कुछ रत्न प्राप्त किए जिन्हें इस पुस्तक के रूप में आपके लिए प्रस्तुत किए हैं। आप का रामायणपठन आपके आध्यात्मिक उन्नत्ति के लिए सहायक बने। आपके इष्टमित्र, एवं परिवारजन भी मधुकरवृत्ति से रामायण का रसास्वाद करें। लोकोत्तर रामायण वैराग्य की खानि है। लोकोत्तर रामायण का संदेश यह है कि अधमाधम व्यक्ति के लिए भी मोक्ष पाना संभव है, यदि वह पश्चात्ताप व अपने कर्म की निर्जरा करें तो !
यह मोक्ष उसे केवल अपने ही पुरुषार्थ के बल पर प्राप्त हाता है....... इति ।
111
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org