Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 123
________________ 110 मोहनीय कर्म कितना भयंकर होता है। अच्युतेंद्र सम्यग्दृष्टि होता है, फिर भी रामर्षि के पतन के लिए उन्होंने प्रयत्न किया। सीतेंद्र के वचन एवं कामोत्पादक संगीत से राम तनिक भी विचलित नहीं हुए। रामर्षि को केवलज्ञान रामर्षि ने अपने ध्यान के बल से माघ शुक्ल द्वादशी की रात्रि के अंतिम प्रहर में केवलज्ञान प्राप्त किया। सीतेंद्र एवं अन्य देवों ने केवलज्ञान का महोत्सव मनाया। रामर्षि की सव्य व दक्षिण दिशा में चामर घूमने लगे। उन्हें सुवर्ण सिंहासन पर अधिष्ठित किया गया। उनके शीर्ष पर सुवर्णछत्र बनाया गया। केवलज्ञानी रामचंद्रजी ने धर्मदेशना दी। देशना के अंत में सीतेन्द्र के पूछने पर उन्होंने लक्ष्मण, रावण एवं सीताजी के भविष्यकालीन जन्मों को स्पष्ट किया 34 लक्ष्मणजी, सीता व रावण के आगामी भव यहाँ पर रावण एवं लक्ष्मण परस्पर तिरस्कार करते थे । वे उभय, एक भव में अशुभ कर्म की निर्जरा कर शुभ कर्म उपार्जित करेंगे। I इसके पश्चात् दूसरे भव में वे पूर्व महाविदेह क्षेत्र की विजयावती नगरी में सुनंद की पत्नी रोहिणी से दो पुत्र, जिनदास व सुदर्शन होंगे वे जैनधर्म की आराधना करेंगे। कर्म की विचित्रता कैसी है! एक भव के परम शत्रु अन्य भव में सहोदर बनेंगे। मरणोपरांत वहाँ से वे पहले देवलोक में देव बनेंगे। यह उनका तीसरा भव होगा। चौथे भव में वे विजयानगरी में मनुष्य देह धारण कर श्रावक जीवन का पालन करेंगे। वहाँ से हरिवर्ष क्षेत्र में दोनों अलग अलग पुरुष रूप में युगलिक बनेंगे। Jain Education International For Personal & Private se C www.library.org

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