________________
सीता के ऊपर आरोप क्यों ?
एक बार मृणालकंद नगर में सुदर्शन मुनि काउस्सम्म ध्यान में खडे थे । अनेक लोग उनको वंदन करने आए थे। यह सब देखकर सीता का जीव वेगवती ने मज़ाक में सभी को कहा- “हे लोगो ! पहले मैंने इस साधु को स्त्री के साथ क्रीडा करते हुए देखा था। उस स्त्री को इसने अभी दूसरी जगह पर भेज दीया है। आप लोग इसको वंदन क्यों करते हो ? यह तो सिर्फ वेशधारी साधु है।" यह सुनकर तुरंत ही सभी लोग कलंक की उद्घोषणा करते हुए मुनि की निंदा करने लगे। उस वक्त मुनि ने न वेगवती पर क्रोध किया, न लोगों पर ।
उन्होंने तो समताभाव में आकर अभिग्रह किया "जब तक मेरे ऊपर से कलंक दूर नहीं होगा, तब तक मैं काउस्सग्ग नहीं पाऊँगा । ' महान आराधक सुदर्शन मुनि के भक्त देव ने वेगवती का मुख श्याम बना दिया। तब उसके पिता श्रीभूति ने साधु के ऊपर दिए कलंक को जानकर वेगवती का बहुत ही तिरस्कार किया। पिताजी के रोष से भयभीत वेगवती ने सभी लोगों को एकत्रित करके कहा- “मुनिश्री तो बिल्कुल निर्दोष है। मैंने कुतुहल से उन पर झुठा आरोप लगाया है। हे मुनि ! मुझे क्षमा कीजिए, माफ कीजिए।" यह सब सुनकर सभी लोग फिर से उस मुनि को वंदन पूजन करने लगे। उसके बाद वह वेगवती परम श्राविका बनी। परंतु देवलोक में से च्यवन कर जब सीता बनी, तब प्रायश्चित्त न लेने से उसके ऊपर आरोप आया, क्योंकि उसने मुनि के ऊपर दुराचार का कलंक चढाया था।
-
सीता, रावण के मृत्यु में निमित्त क्यों बनी ?
अत्यन्त रूपवती कन्या वेगवती को देखकर शंभूराजा ने श्रीभूति के पास उसकी याचना की। तब श्रीभूति ने कहा- "मैं अपनी कन्या किसी भी मिथ्यादृष्टि को नहीं दूँगा।" यह सुनकर शंभुराजा ने श्रीभूति को मारकर वेगवती के साथ बलात्कार किया। उस समय वेगवती ने शाप दिया "भविष्य में, मैं तेरे वध का कारण बनूंगी।" शंभुराजा रावण बना, तब वेगवती का जीव सीता के रूप से उत्पन्न हुआ । पूर्वभव में दिये हुए शाप के कारण सीता, रावण की मृत्यु में कारण बनी।
वेगवती ने प्रायश्चित्त लेकर हरिकांता आर्या के पास दीक्षा ली। उत्तम कन्याएँ एक बार भी बलात्कार से भोग का शिकार बन जाए, तो दूसरे के साथ शादी नहीं करती, परंतु संयम का मार्ग स्वीकारती है। आयुष्य पूर्ण करके वह पाँचवें ब्रह्मदेवलोक में गई ।
शंभुराजा का जीव भवभ्रमण कर कुशध्वज नाम के ब्राह्मण की पत्नी सावित्री से प्रभास नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने विजयसेन मुनि के पास दीक्षा ली और कठोर तप तपने लगा।
calon isterations
एक बार विद्याधर
राजा कनकध्वज, इंद्र जैसी श्रेष्ठ ऋद्धि सहित सम्मेत शिखरजी तीर्थ की यात्रा करने जा रहा था। तपस्वी प्रभास मुनि ने उसको देखकर निदान किया “मेरे तप के प्रभाव से
मैं इस विद्याधर राजा जैसा
समृद्धिवाला बनूं।" वहाँ से मृत्यु पाकर वह तीसरे देवलोक में उत्पन्न हुआ वहाँ से च्यवन कर तीन खंड के राजा प्रतिवासुदेव रावण के रूप में हुआ। पापानुबंधि पुण्य से वह मरकर चौथी नरक में गया। धनदत्त और वसुदत्त का मित्र याज्ञवल्क्य जो ब्राह्मण था, वह कितने ही भव भटक कर बिभीषण बना ।
"श्रीभूति, लक्ष्मण कैसे बना"
शंभुराजाद्वारा मारा गया श्रीभूति देवलोक में गया । वहाँ से मृत्यु पाकर वह सुप्रतिष्ठपुर में पुनर्वसु नामक विद्याधर हुआ। एक बार उसने कामातुर बन कर पुंडरीक विजय में से त्रिभुवनानंद नामके चक्रवर्ती की कन्या अनंगसुंदरी का अपहरण किया। चक्रवर्ती ने उसका पीछा करने के लिए विद्याधरों को भेजा। उनके साथ युद्ध करते पुनर्वसु आकुल व्याकुल बना । तब पुनर्वसु के विमान में से अनंगसुंदरी किसी एक लतागृह में गिर पडी।
पुनर्वसु की इच्छा उस सुंदरी को प्राप्त करने की थी, परंतु वह निष्फल हुई। तब उसको प्राप्त करने हेतु निदान करके पुनर्वसु ने दीक्षा ग्रहण की व आयुष्य पूर्ण करके देवलोक में गया। वहाँ से च्यवन कर लक्ष्मण बने ।
वह अनंगसुंदरी वन में रहकर उग्र तप करने लगी। अंत में उसने अनशन किया। ऐसी स्थिति में अजगर ने उसको निगल ली। वह मरकर ईशान देवलोक में देवी बनी। वहाँ से च्यवन कर वह लक्ष्मण की पत्नी विशल्या हुई । पूर्वभव में तप किया था, अतः रावण द्वारा लक्ष्मण के ऊपर जिस अमोघ विद्या का प्रहार हुआ था, वह विशल्या के स्पर्श से नष्ट हो गई।
121
वसुदत्त का जीव श्रीभूति ब्राह्मण बना। गुणवती का जीव श्रीभूति की पुत्री वेगवती बना। शंभुराजा ने श्रीभूति को मारा। कर्म की कितनी विचित्रता है कि भविष्य में लक्ष्मण बनने वाले श्रीभूति और उनकी भाभी बननेवाली सीता, श्रीभूति की पुत्री बनी पिता-पुत्री के संबंधवाले भविष्य में देवर भोजाई बनें शंभुराजा ने श्रीभूति को मारा था. इस वैरानुबंध से भविष्य में श्रीभूति का जीव लक्ष्मण, रावण को मारने
the