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परिशिष्ट १ दशरथ, सत्यभूति मुनि व जनकराजा के पूर्वभव
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पूर्वभव सुनकर दशरथ को वैराग्य क्यों हुआ ? एवं पूर्वभव में जनकराजा व सत्यभूति मुनि के साथ उनका क्या सम्बंध था ?
सेनापुर नगर में भावन नाम के वणिक की पत्नी दीपिका से उपास्ति नाम की पुत्री उत्पन्न हुई। वह साधुओं की निन्दा करती थी। इस प्रकार अनेक भयंकर पाप कर जानवर आदि भवों में परिभ्रमण करके वह चन्द्रपुर नगर में धन की पत्नी सुंदरी की कुक्षि से वरुण नामक पुत्र हुई। वरुण ने उदारवृत्ति अपनाकर भक्ति से साधुओं को दान दिया। एक दिन साधु के प्रति द्वेषी वह जीव आज साधु का भक्त बन गया । दान देने वाला जीव मनुष्य बनता है। इसलिये वरुण मरकर घातकी खंड के उत्तर कुरु में युगलिक मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुआ। अल्प कषायवाला युगलिक होने से वरुण का जीव मरकर देव बना । वहाँ से मृत्यु पाकर पुष्कलावती विजय के पुष्पकला नगरी में नंदिघोष राजा की पत्नी पृथ्वी देवी की कुक्षि से वह नंदिवर्धन नामक पुत्र हुआ। नन्दिवर्धन को राज्य सोंप कर नंदिघोष ने यशोधर मुनि के पास दीक्षा ली। वह मरकर ग्रैवेयक देवलोक में गया।
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नंदिवर्धन, श्रावक धर्म का पालन कर पाँचवें देवलोक का देव बना आयुष्य पूर्ण होने पर पश्चिम महाविदेह के वैताढ्यपर्वत की उत्तरश्रेणी के शशिपुर नगर में वह विद्याधर राजा रत्नमाली की पत्नी विद्युल्लता की कुक्षि से सूर्यंजय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।
एक बार अहंकारी सिंहपुर के राजा को जीतने के लिये रत्नमाली ने सिंहपुर की ओर प्रयाण किया । रत्नमाली ने सिंहपुर को
दशरथ
उपास्ति
तिर्यचादि भव भ्रमण
वरुण
युगलिक देव नंदिवर्धन पांचवां देवलोक
सूर्यजय ७ वां देवलोक
दशरथ
सत्यभूति
नंदिघोष ग्रैवेयक
आग्नेय विद्या से जलाने का प्रारंभ किया। इतने में तो आठवें देवलोक का देव जो पूर्वभव में उपमन्यु नाम का पुरोहित था, उसने कहा, "हे राजन् ! ऐसा अनर्थ मत करो। आप पूर्व भव में भूरिनंदन नाम के राजा थे मैं आपका पुरोहित उपमन्यु था। एक बार आपने मांसत्याग का नियम लिया था। मगर मैंने गुमराह कर उस नियम को तुडवा दिया। वह पापी पुरोहित मैं स्कन्द नाम के पुरुष से मारा गया। मरकर हाथी बना। एक बार युद्ध में हाथी मारा गया। उसके बाद में, हाथी का जीव भूरिनंदन राजा ऐसे आप की पत्नी गंधारी की कुक्षि से अरिसूदन नामक पुत्र हुआ। जातिस्मरण होने पर मैंने दीक्षा ली व मरकर आठवें देवलोक में देव बना । भूरिनंदन नाम के राजा, आप मरकर जंगल में अजगर बने। वहाँ से मरकर दूसरी नरक में उत्पन्न हुए। मैं सहस्रार देव पूर्वभव के स्नेह से आपको प्रतिबुद्ध करने आया था। वहाँ से मरकर आप रत्नमाली राजा बने। मांस त्याग का नियम भंग कर आप भयंकर वेदनाओं के शिकार बने हैं। अब नगर जलाकर नया पाप कर्म न बांधे" देव के मुख से पूर्वभव सुनकर रत्नमाली व उनके पुत्र सूर्यजय वैरागी बनें। अतः सूर्यंजय के पुत्र कुलनंदन को राजगद्दी पर बिठाकर रत्नमाली ने अपने पुत्र सूर्यजय के साथ आचार्य देव श्री तिलकसुन्दरसुरीश्वरजी महाराज के पास दीक्षा ली। वहाँ से दोनों सातवें देवलोक में देव बने देवलोक से च्युत होकर सूर्यजय आप दशरथ बने, रत्नमाली जनक राजा बनें, आठवें देवलोक से च्युत होकर उपमन्यु देव, जनकराजा का छोटा भाई कनकराजा बने। नंदिवर्धन के पिता मुनि नंदिघोष ग्रैवेयक से च्युत होकर सत्यभूति मुनि बने। दशरथ को अपने पूर्वभव सुनकर वैराग्य उत्पन्न हुआ। संसार में कर्म की कितनी विचित्रता है, एक दिन रत्नमाली पिता व सूर्यंजय पुत्र थे व इस भव में समधि (वेवाई) बने। एक भव में गुरु की निंदा करने वाली उपास्ति नाम की कन्या, दशरथ बनी। कर्म की विचित्रता जानकर अधर्म को छोड़कर धर्म में पुरुषार्थ करना चाहिये ।
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सत्यभूति
तालिका
जनक राजा
भूरिनंदन
अजगर
२ री नरक रत्नमाली
७ वां देवलोक
जनकराजा
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कनक राजा
उपमन्यु हाथी
अरिसूदन
देव
कनकराजा
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