Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 106
________________ राम-लक्ष्मण का लव-कुश के साथ युद्ध युद्ध का आरंभ तो हुआ, किंतु जब-जब राम-लक्ष्मण उन कुमारों को अपना लक्ष्य बनाने की चेष्टा करते, उनके हृदय में प्रेम व स्नेह उमड आता था अतः वे अपने शस्त्रों का योग्य नियंत्रण नहीं कर पाते व उनके बाण नीचे गिरने से लक्ष पर नहीं पहोंच पाते। मगर कुमारों के बाण तो लक्ष्यवेधी थे। दोनों कुमार बाणों की अविरत वर्षा कर रहे थे। दशरथपुत्रों ने वज्रावर्त व अर्णावर्त धनुष्यों का टंकार 12 pach Jain Education International DILIP SON किया, परंतु उसका विपरीत परिणाम हुआ। शत्रुहृदयों को भयाकुल करनेवाली उस रौद्र ध्वनि को सुनते ही रामसेना, भयभीत होकर पलायन करने लगी। अब वासुदेव लक्ष्मण ने कुश की दिशा में सुदर्शन चक्र फेंका, किंतु कुश को एक प्रदक्षिणा देकर चक्र पुनः लक्ष्मण के हाथ में लौटा। राम व लक्ष्मण चिंतित होकर विचार करने लगे कि, 'यह कैसा अघटित चमत्कार है ? क्या हम बलदेव व वासुदेव नहीं है ? क्या ये दो कुमार नूतन बलदेव व वासुदेव हैं ? क्या अब सूर्यवंश का नाश होनेवाला है ?" For Personal & Private Use Only 9:2000) 93 www.jainelibrary.org

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