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सतीत्व का चमत्कार
एक ही क्षण में समस्त अग्निशिखाँए शीतल जल में परिवर्तित हो गई। खड्डा जल से व्याप्त हो गया। जल में सुगंधित कमल खिले । एक विशाल कमल पर सिंहासन था, जिस पर सीताजी अधिष्ठित थी। उनका दिव्य शरीर कुन्दन की भाँति दमक रहा था। दिव्य वस्त्रों व आभूषणों से भूषित सीताजी, साक्षात् लक्ष्मी लग रही थी। कुछ ही समय में जल खड्डे से उछल कर चारों दिशाओं में फैल गया।
बड़े बड़े मंच व मंडप भी जल में अदृश्य होने लगे। भयभीत होकर विद्याधर आकाश में उड़ान करने लगे। आतंकित भूचर पुकारने लगे, "हे महासती ! हमारी रक्षा कीजिये ।" आसन से उठकर सीताजी ने जल प्रवाह को स्पर्श किया व पुनः खड्डा की दिशा में मोड दिया। अब केवल खाड्डे में ही पानी था, जिससे वह एक विशाल तालाब जैसे दीख रहा था। जल में अनगिनत कमल व हंस थे। सीताजी की प्रशंसा करते हुए नारदजी व अन्य देव आनंदविभोर होकर नृत्य करने लगे। उन्होंने सीताजी पर दिव्य पुष्पों की वर्षा की। “धन्य.. धन्य" के जयघोष से सीताजी के सतीत्व की प्रशंसा होने लगी... परंतु.....
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