Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 90
________________ 50000ococon PROTON CA ADO Rasy LETO 7 SC Jain Education International For Personal & Private Use Only लंका के अतिथिगृह में नारदजी का आगमन राम, लक्ष्मण, सीता व उनकी सेना के सदस्यों ने छह वर्ष लंका में खुशी से व्यतीत किये। नारदजी लंका में पधारे तब नारदजी का सम्मानपूर्वक स्वागत कर राम ने उनसे आगमन का प्रयोजन पूछा। तब नारदजी ने उन्हें उनकी माताओं की चिंता का विशद किया। नारदजी का वृत्तांत सुनते ही रामचंद्रजी ने राजा विभीषण से कहा, “राजन्! आपकी भक्ति एवं आतिथ्य के कारण हम अपनी माताओं का दुःख भी भूल चूके थे। गत छः संवत्सरों से हम यहाँ वास कर रहे हैं। हमारे वियोग से उनका मृत्यु हो न जाए। इसलिए हमें अयोध्या पहुँचना चाहिये। राजन् ! आप यह न समझिये कि आपके आतिथ्य में कोई क्षति होने के कारण हम पुनः अयोध्या 1 जाना चाहते हैं किंतु इस बात पर विचार करे कि जो आतिथ्य हमें छः संवत्सर तक यहाँ बद्ध कर सकता है, वह स्वयं में संपूर्ण है ही।" विभीषण ने कहा, "यद्यपि अपनी माताओं का दुःखहनन करने हेतु आपका यहाँ से शीघ्र गमन अनिवार्य हैं, किंतु केवल सोलह दिन तक आप लंकानिवासियों को अपने सहवास से वंचित न करें। इस अंतराल में मेरे शिल्पी अयोध्या जाकर उसे स्वर्ग नगरी-सी सुंदर बनाएँगे।" रामचंद्रजी के पुनरागमन के समाचार उनकी माताओं को देते हुए नारदजी ने कहा कि "दुःख एवं निराशा की काली रात, जिसने अयोध्या, अयोध्यावासी एवं आपके हृदयों को दीर्घकाल सुख से वंचित रखा था, अब शीघ्र ही पूर्ण होनेवाली है केवल सोलहदिनों के पश्चात् आप राम, लक्ष्मण व सीताजी के पुनः दर्शन पायेंगे।" यह समाचार सुनकर माताएँ हर्षविभोर हो गई। 77 केवल सोलह दिनों के अल्पसमय में विभीषण राजा के शिल्पियों ने अयोध्या का इतना रमणीय कायापरिवर्तन किया कि वह साक्षात् कुबेर के अलकानगरी से सुंदरतर दीखने लगी। www.jainelibrary.org

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