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गर्भवती सीता, राम को सर्वाधिक प्रिय लगने लगी। अतः सपत्नियों को ईर्ष्या होने लगी। मानव को विनाशक कार्य करवानेवाली ईर्ष्या सब से बड़ा अवगुण है एवं मोक्षसाधक के मार्ग पर सब से बड़ा अवरोध है, ऐसा शास्त्रकारों ने कहा है। ईष्या के कारण ही अंजनासुंदरी को २२ वर्ष का विरह हुआ था।
सीता द्वारा रावण के पैरों का चित्र बनाना
एक दिन सपत्नियाँ सीता से पूछने लगी, “आपका हरण करनेवाला रावण क्या बहुत सुंदर था ? उसे चित्रित कर क्या आप हमें दिखा सकती है ?” सीता ने कहा, “मैंने तो उसका मुख कभी देखा ही नहीं, केवल पैर देखे थे।" "तो ठीक है, आप केवल "उसके पैर चित्रित कीजिए", सपत्नियों ने कहा। सीता मानिनी थी, मन्युमती थी, किंतु बहुत सरल व सीधीसादी भी थी। उन्हें तनिक भी संशय नहीं हुआ। सरल स्वभावी सीता रावण के पैर चित्रित कर रही थी, अचानक रामचंद्रजी वहाँ पधारे। सीताजी की सौतनों ने राम से कहा, "देखिये, आपकी प्रिय पटरानी सीता अभी भी रावण को भूल नहीं पाई। इसका प्रमाण चाहिये, तो उनके द्वारा चित्रित रावण के इन पैरों को देखिये ।”
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