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तब लक्ष्मणजी ने कहा कि, “अपने आप से भी आपको अधिक प्रेम करनेवाली महासती सीता ने सारथी द्वारा आपका वचन सुनकर कितना विलाप किया होगा... क्या आपका पुनः विरह सीताजी सहन कर पाएगी। लंकापुरी में तो वे यह आशा मन में लेकर जीवित रही थी कि किसी दिन आप अवश्य आएँगे व दुष्ट रावण को दंडित कर उन्हें सम्मानसहित पुनः स्वीकारेंगे। किंतु अब तो स्वयं आपने ही उनका त्याग किया है, अब वे किस आशा से जीवित रहेगी ? अब तक तो आपके विरह की वेदनाओं ने शायद उनके प्राणहरण कर दीये होंगे !” रामचंद्रजी बोले, “मुझे विश्वास है अपने पुण्य के आधार से वह अभी भी जीवित होगी ही!" लक्ष्मणजी ने कहा, "तब तो आपसे अनुरोध है कि आप स्वयं सेनापति कृतान्तवदन एवं अन्य विद्याधरों को साथ लेकर त्वरित वन में जाएँ व उन्हें शोधकर पुनः लौट आईये। अन्यथा उनकी मृत्यु हो जाएगी।" लक्ष्मणराजा का यह वचन
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89 सुनते ही स्वयं राम कृतान्तवदन एवं अन्य विद्याधरों के साथ सिंहनिनाद वन आ पहुँचे। वहाँ पर्वत पर्वत वृक्ष वृक्ष सर्वत्र सीता की शोध की, फिर भी सीताजी के जीवित या मृत होने का कोई भी चिन्ह उन्हें नहीं मिला । अतः उन्होंने मान लिया कि किसी वन्य पशु ने सीताजी को अपना भक्ष्य बनाया होगा हताश होकर वे पुनः अयोध्या लौटे। अब लोकप्रवाद का मुख रामचंद्रजी की दिशा में था। लोग कहने लगे, "निष्ठुर राम ने अपनी निर्दोष स्त्री का निर्दयता पूर्वक त्याग किया, किंतु सती सीता ने उनके प्रति दोषारोप तक नहीं किया, अपितु मिथ्यात्वी जनों के बहकावे में आकर जिनधर्म का त्याग न करें, यह आत्महितकारी संदेश भेजा । धन्यधन्य है सती सीता । न्यायनिष्ठ राम अन्यायी कैसे बन गए !" लोकप्रवाद ढोलक की तरह दोमुहाँ होता है। ढोलक कभी दाहिनी बाजू से तो कभी बायी बाजू से बजती है जो लोग पहले सीताजी की निंदा करते थे, अब वे राम पर बरसने लगे ।
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लव-कुश का जन्म व
पितृमिलन
पुंडरीकपुरी में सीताजी ने दो युगल पुत्रों को जन्म दिया। अपनी भगिनी सीता के मातृत्व प्राप्ति का महोत्सव वज्रजंघ राजा ने इतने ठाट-बाटपूर्वक मनाया कि लोग कहने लगे “राजा ने स्वयं अपने पुत्रजन्म का उत्सव भी इतने हर्षोल्लास पूर्वक नहीं मनाया होगा ।" सीता के पुत्रों के नाम अनंगलब एवं मदनांकुश रखे गये। आगे जाकर वे लव व कुश इन नामों से प्रसिद्ध हुए योग्य पालन पोषण एवं संस्कारों द्वारा वासित वे दोनों पुत्र देखते ही देखते बढ़ने लगे ।
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एक दिन सिद्धपुत्र नामक एक श्रावक मेरुपर्वत की चैत्य यात्रा कर आकाशगामिनी विद्या द्वारा सीता के प्रासाद में पहुँचे। सीताजी ने उनका यथायोग्य आदर-सत्कार किया। सिद्धपुत्र श्रावक अष्टांग निमित्त के ज्ञानी थे। सिद्धपुत्र श्रावक द्वारा पूछे जाने पर सीताजी ने अपनी जीवन कहानी उन्हें सुनाई। सीता को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा, "आप व्यर्थ चिंता क्यों कर रही है? आपके दोनों पुत्र शुभलक्षणयुत हैं। वे साक्षात् राम-लक्ष्मण बनने वाले हैं और आपके समस्त मनोरथ पूर्ण करेंगे।”
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