Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 100
________________ में पुनरागमन असंभव है। यदि आप श्रीरामचंद्र से कुछ कहना चाहती हैं, तो कहिये । आपका संदेश मैं अक्षरशः स्वामी रामचंद्र तक पहुँचाऊँगा।" पतिव्रता सीता ने कहा, "अपने राजा के भ्राता से कहिए कि उनकी परित्यक्ता पत्नी ने प्रश्न किया है कि यदि आप लोकापवाद के कारण भयभीत बने थे, तो मेरी परीक्षा क्यों नहीं की? जब पत्नी के चरित्र पर शंका उत्पन्न होती है, तब विवेकी जन अग्निदिव्य आदि का आश्रय लेते हैं। क्या आपने अपने कुल व विवेक की मर्यादाओं के अनुसार ऐसा किया है ? मेरे साथ जो हुआ है, वह मेरे अशुभ कर्मों का परिणाम है। मैं अपने अशुभ कर्म वन में रहकर भुगत लूँगी। किंतु उनसे अवश्य कहिये - जिस प्रकार दुर्जनों के मिथ्यावचनों 87 के कारण उन्होंने आज मेरा त्याग किया है, उस प्रकार अन्य मिथ्यादुष्टि लोगों के वचन सुनकर मोक्षदायी शाश्वत जिनधर्म का त्याग आप मत करना। उनका सदा कल्याण हो। मातासमान मेरी सासुओं तक मेरे प्रणाम पहुँचा देना । लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न को मेरे अंतर आशीर्वाद कहियेगा । आप संभालकर अयोध्या लौट जाईये । आपका मार्ग कल्याणकारी बनें।" __ "पति की विपरीत वृत्ति का तनिक भी विरोध किए बिना सीताजी ने कितना कल्याणकारी संदेश भेजा है। वास्तव में सीता श्रेष्ठ सती है।" इस प्रकार विचार करते करते सीता को प्रणाम कर सारथी, सीताविहीन रथ लेकर पुनः अयोध्या लौटा। सीताजी पुंडरीकपुर में सीताजी को वज्रजंघ राजा का निमंत्रण पुरुष चाहे कितना भी पराक्रमी हो, सिंहनिनाद जैसे निबिड भयानक जंगल में आते ही प्रायः भयभीत हो जाता था। सीता ठहरी एक निःशस्त्र अबला... वह भी गर्भवती, राजवंशी... एवं परित्यक्ता ! अतः उनका भय से आतंकित होना स्वाभाविक था । वे अत्यंत भयाकुल होकर इतस्ततः भटकने लगी। पग-पग पर ठोकरें खाती सीता अपने अशुभ कर्म को कोसने लगी। वे विचार कर रही थी, "यह सब मेरे अशुभकर्मों का दोष है, अन्य किसीका नहीं।" इस प्रकार करुण रुदन करती सीताजी ने अचानक, वन में कुछ सैनिकों को देखा । सैनिक भी सीताजी को देखकर डर कर खडे रह गए। यह क्या...? इतनी सुंदर नारी... अकेली... इस भयानक वन में ? क्या यह देवलोक की कोई देवी पृथ्वी पर उतरी है ? अथवा यह वनलोक में रहने वाली कोई यक्षिणी है ? यदि यह कोई असामान्य दिव्य स्त्री है, तो इस प्रकार विलाप क्यों कर रही है ? इस प्रकार विचार करते हुए सैनिकों ने अचानक अपने राजा की आवाज सुनी व उनकी विचारशृंखला टूट गई। शब्दवेदी राजा ने वैदेही का रुदन सुनकर पहचान लिया कि, यह आवाज किसी गर्भवती महासती की है। Jain Education International

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