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का अपहरण किया है। अतः आपसे अनुरोध है कि अपने भ्राता को समझाकर सीताजी को मुक्त करवाईये। राम की पत्नी का अपहरण केवल इस भव में ही नहीं, अपितु परलोक में व भविष्यकालीन भवों में भी दुःखदायी होगा।" बिभीषण ने कहा "हे रामभक्त ! आपका कथन सत्य ही है। मैंने स्वयं अपने भ्राता से इस विषय में अनुरोध किया था, परंतु "विनाशकाले विपरीत बुद्धि" उन्होंने मेरी माँग अस्वीकार की। परंतु अब मैं पुनः प्रयत्न करूँगा। यह प्रश्न मेरे भाई के अहंकार का नहीं, अपितु लंका के अस्तित्व का है।"
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सीताजी का राम की मुद्रिका देखकर साश्चर्य हर्ष विभोर होना
बिभीषण के प्रासाद से निकलकर हनुमानजी देवरमण उद्यान में गये । अशोक वृक्ष के तले उन्होंने सीता को देखा, उनकी बिखरी रुखी लटें गालों पर लटक रही थी। नेत्रों से अविरत बहता जल मानो धरित्री का प्रक्षालन कर रहा था। सतत इक्कीस दिन के अनशन (उपवास) से उनका शरीर कृश एवं मुख म्लान हो चुका था। परंतु उनका वज्रनिर्धार अबाधित था। यद्यपि उनका मुख हिमपीडित कमलिनी-सा म्लान था, परंतु नेत्र अग्निशिखा की भाँति दहक रहे थे। निश्चल बैठी हई सीताजी योगिनी के समान दीख रही थी। उनका ध्यान राम पर केंद्रित था। यह दृश्य देखकर हनुमानजी, मन ही मन में कहने लगे, "वास्तव में ये तो महासती हैं। इनके विरह से रामचंद्रजी को जो मरणप्राय पीडा हो रही है, वह भी स्वाभाविक है। इस अपहरण के कारण रावण दो प्रकार से दंडित होनेवाला है, एक श्रीराम से व दूसरा अपने भयंकर पापकर्म से"
इसके पश्चात् अदृश्य होकर हनुमानजी ने सीताजी के आँचल में रामचंद्रजी की मुद्रिका रख दी। मुद्रिका देखते ही सीताजी हर्ष-विभोर हो गई।
सीताजी की मुखमुद्रा पर हर्ष देखते ही त्रिजटा ने रावण तक ये समाचार पहुँचा दिए। “आज तक जिस सीता की मुखमुद्रा म्लान एवं दुःखी थी, उस पर अचानक आनंदभाव प्रकट हुआ है। निश्चित ही उसे राम का विस्मरण हो गया है।" यह सुनकर रावण ने पुनः एक बार मंदोदरी को सीता से मिलने के लिए कहा। दोबारा रावण की पट्टरानी सती मंदोदरी, अपने ही पति की दूती बनकर देवरमण उद्यान गई। उन्होंने सीता से कहा, "महाशक्तिशाली रावण ऐश्वर्य एवं सुंदरता का संगम है। आपका लावण्य भी अद्वितीय है। दुर्दैववशात् अभी भी आप परस्पर प्रेम से वंचित है। आपका आनंदित मुखारविंद देखकर मुझे लगता है कि अब आप दोनों का भाग्योदय होनेवाला है। आप लंकापति के प्रेम को स्वीकृति क्यों नहीं देती?" यदि आप आज ऐसा करेगी, तो मैं एवं अन्य रानियाँ आजीवन दासी बनकर आपकी सेवा करेंगी।
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