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DILIP SONI 8/1999
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बहुरूपिणी विद्या से अनेक रावण के साथ लडते हुए
लक्ष्मण
प्रातः उठते ही बहुत अपशकुन हुए., फिर भी रावण युद्धभूमि पर गया।
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वहाँ लक्ष्मण का भीमपराक्रम देखकर भयभीत बने रावण ने बहुरूपिणी विद्या का स्मरण किया। अचानक युद्धभूमि में पूर्व पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी दिशाओं में रावण के रूप दीखने लगे। हर दिशा से बाणवृष्टि करते हुए अनेक रावण देखकर राम की सेना भयभीत हुई। लक्ष्मण, गरुडपर खडे होकर रावण की बाणवर्षा का प्रतिकार करने लगे। निरंतर चलती उनकी शरवर्षा ने रावण को उद्विग्न बना दिया। अतः रावण ने प्रतिवासुदेव के चिन्ह रूप सुदर्शनचक्र का स्मरण किया । क्रोध से आरक्त रावण ने आकाश में गति देकर चक्र को लक्ष्मण की दिशा में फेंका, किंतु वह चक्र लक्ष्मण की प्रदक्षिणा कर उनके दक्षिण हस्त में आया, क्योंकि लक्ष्मण स्वयं वासुदेव थे वासुदेव पर सुदर्शन चक्र प्रहार नहीं करता। अब रावण को नैमित्तिक के कथन का स्मरण होने
लगा। तब बिभीषण ने एक बार पुन: रावण को कहाँ "भाताश्री ! आप अभी भी सीताजी को सौंप दीजिए। इससे आपका विनाश नहीं होगा" परंतु अहंकारी रावण ने कहाँ रे दुष्ट चक्र निष्फल गया तो क्या हुआ ? मैं अपनी एक ही मुठ्ठी से लक्ष्मण को खत्म कर दूँगा । लक्ष्मण ने सत्वर चक्र को गति देकर रावण के वक्ष पर फेंका और उस तेजस्वी चक्र ने रावण की छाती चीर दी। विशाल वृक्ष की भाँति, रावण धराशायी हो गया। रामसेना ने जयनाद किया। स्वर्ग से देवों ने लक्ष्मण पर पुष्पवृष्टि की। मरणोपरांत रावण का जीव चौथे नरक में गया ।
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