Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 78
________________ करने की इच्छा है। रावण स्वयं को सर्वत्र विजयवंत मानता है, अन्य किसी के पराक्रम को स्वीकारता नहीं है अतः उसे रामचंद्र के सेवक का पराक्रम बताकर ही जाऊँगा" सीताजी ने उन्हें अपना चूडामणि दिया, उसे लेकर वे वसुंधरा को कंपायमान करने लगे । देवरमण उद्यान की तोडफोड इसके पश्चात् वन्य हस्ती की तरह उन्होंने देवरमण के विध्वंस का आरंभ किया। अशोक वृक्ष, बकुल वृक्ष, आम्रवृक्ष, मंदारवृक्ष, कदलीवृक्ष आदि उखाड़कर इतस्ततः कर उन्होंने देवरमण उद्यान में हाहाकार मचाया। कोलाहल सुनते ही रावण के नियुक्त द्वारपाल वहाँ आए, उनके हाथो में मुद्गर थे। जब वे हनुमानजी के शरीर पर प्रहार करने की चेष्टा करने लगे, तब उन्होंने समूल उखाड़े हुए वृक्षों से राक्षसों पर प्रहार किया। पराक्रमी पुरुष चाहे निःशस्त्र हो, अकेला हो या विपदाओं से घिरा हो, वह चलायमान नहीं होता। Ja Education International को वीरस्य मनस्विनः स्वविषयः को वा विदेशस्तथा । देशं श्रयते तमेव कुरुते बाहुप्रतापार्जितम् ॥ यदंष्ट्रानखलांगुलप्रहरणः सिंहो वनं गाहते। तस्मिन्नैव हत द्विपेन्द्ररुधिरैस्तृष्णां छिनत्त्यात्मनः ॥ कितने ही सुभटों ने रावण के समक्ष जाकर उसे संपूर्ण वृत्तांत सुनाया, तब रावण ने अपने पुत्र अक्षयकुमार को हनुमान को मार देने का आदेश दिया। दोनों का तुमुल युद्ध हुआ। अंतमें अक्षयकुमार मारा गया। अक्षयकुमार के बाद उसका अनुज इंद्रजित वहाँ आया। उसके सभी शस्त्रास्त्र हनुमानजी की वज्रकाया पर निष्फल होने लगे, अंत में क्रोधावेश में आकर उसने हनुमान पर नागपाश का प्रयोग किया। कौतुकवशात् हनुमानजी उन पाशो में बद्ध हो गए। फिर सैनिक उन्हें रावण के पास ले गये। रावण ने कहा, "हे वानर ! तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है क्या ? राम और लक्ष्मण तो वनवासी हैं। फलाहारी, मलिन वस्त्रधारी और कुटिया निवासी वे दोनों तुम पर तुष्ट भी होते हैं, तो तुम्हें क्या निहाल कर देंगे ? मंदबुद्धि हनुमान ! उनके वचन सुनकर तुम क्यों अपने प्राण गँवाने के लिए तैयार हो गए ? तुम मेरे भूतकालीन सेवक हो और शत्रु के दूत हो, अतः तुम अवध्य हो।" रावण का कहना सुनते ही हनुमान ने कहा, "मैं तुम्हारा सेवक कब था ? और तुम मेरे स्वामी कब से हो ? अपनी आवश्यकतानुसार तुम हमें सहायता के लिए बुलाते थे व हम तुम्हारी सहायता करते थे। मेरे पिता पवनंजय ने तुम्हें व तुम्हारे बहनोई खर को वरुण के बंधन से छुडाया था। वरुण के पुत्रों के क्रोध से मैंने ही तुम्हारी रक्षा की थी। परंतु अब तुम सहायता के लिए योग्य नहीं हो, क्योंकि तुमने परदारा हरण का पाप किया है। तुमसे बात करना भी मेरे लिए पाप है। क्या तुम्हारे परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति है, जो तुम्हें पराक्रमी लक्ष्मण से बचा सके ? राम की बात तो दूर रही ।" यह सुनकर क्रोध से कंपायमान रावण ने प्रलाप किया, "एक तो तुम हमारे शत्रु के पक्ष में गए हो, अतः तुम भी हमारे शत्रु हो, यद्यपि दूत को मारा नहीं जाता, परंतु अनुचित बोलने वाले दूत को दंड जरूर दिया जाता है। हे अधम ! तुम्हें तो गधे पर आरूढ कराकर लंका के प्रत्येक मार्ग में लोगों की भीड समक्ष घूमाया जायेगा ।" क्रोध से कोपायमान हनुमान ने कमलनाल की भाँति नागपाश तोड़ दिए और विद्युल्लेखा की तरह लपककर रावण के मुकुट पर पादप्रहार कर उसे चूर चूर कर डाला । अतिक्रोध से उन्मत्त रावण, "इस अधम को Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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