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शांति स्नात्र
अषाढ शुक्ल अष्टमी के शुभ दिन दशरथराजा ने धूमधाम से अष्टान्हिका चैत्य महोत्सव का आयोजन किया। इस अवसरपर उत्तमोत्तम पूजासामग्री के साथ शांतिस्नात्र महापूजा भी करवाई।
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शांतिस्नात्र संपन्न होते ही अंतःपुर के मुख्यअधिकारी कंचुकी के द्वारा शांतिस्नात्र का जल मुख्यमहिषी पट्टरानी कौशल्या को सर्वप्रथम भेजा गया । अन्य रानियों के प्रासादों में दासियों द्वारा स्नात्रजल भेजा गया। सामान्यतः कंचुकी वृद्ध पुरुष ही होता है। राजा दशरथ के अंतःपुर का कंचुकी भी वृद्धत्व के कारण धीरे-धीरे चल रहा था । अतः वह पट्टरानी के प्रासाद में शीघ्र न पहुँच पाया। युवा दासियों ने दौडदौड कर अन्य रानियों के प्रासादों में स्नात्रजल शीघ्र पहुंचा दिया।
कौशल्या द्वारा आत्महत्या का प्रयास
स्नात्रजल सबसे पूर्व न मिलने के कारण महारानी कौशल्या दुःखी होकर विचार करने लगी- 'मैं तो राजमहिषी हूँ.. फिर भी शांतिस्नात्र का जल सबसे पहले अन्य रानियों को पहुँचाया गया। हाय... कितनी मंदभागिनी हूँ मैं ! स्वमान का ध्वंस होने पर जीवित रहना मृत्यु से भी अधिक दुःखद है। अब मेरे लिए आत्महत्या करना ही उचित है।"क्रोधावेश के कारण कौशल्या ने विवेकशक्ति खो दी।
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