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राम, लक्ष्मण व सीता विहरते विहरते वंशशैल्य पर्वत तट पर स्थित वंशस्थल नगर आए। वहाँ पर राजा से लेकर सामान्य प्रजा तक समस्त जन भयभीत दीख रहे थे। राम ने इस विषय में एक पुरुष से चर्चा की, तब ज्ञात हुआ कि गत तीन रात्रि से पर्वत पर भयंकर कोलाहल चल रहा था। इससे आतंकित सभी जन अन्य स्थान पर रात्रि व्यतीत कर प्रातः पुनः लौटते थे। राम, लक्ष्मण एवं सीता ने पर्वतारोहण किया। पर्वत शिखर पर उन्हें जयभूषण एवं कुलभूषण मुनि के दर्शन हुए। उन तीनों ने मुनियों के समक्ष गीत नृत्यादि प्रस्तुत किये।
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लक्ष्मण ने वनमाला को वचन दिया
लक्ष्मण भी गमन के लिए तैयार हो गए तब वनमाला ने कहा, "हे प्राणनाथ...! इतना दुःख भुगतने के पश्चात् आप मुझ अभागिन को मिलें, अब मैं आपका विरह सहनहींपाऊँगी। मैं आपकी अनुगामिनी बनना चाहती हूँ। आप मुझसे ब्याह करें व अपने साथ ले चलें।"
लक्ष्मण ने कहा, “सांप्रत में अपने भ्राता व भाभी की सेवा में तत्पर हूँ, यदि आप मेरे साथ रहोगी, तो मैं न अपना सेवकधर्म निभा पाऊँगा नही पतिधर्म। इससे मेरे भ्राता, भाभी, एवं आप- तीनों पर अन्याय होगा। अतः आप यहीं रहें। जब मेरे भ्राता इष्ट स्थान प्राप्त करेंगे, तब मैं अवश्य आपको लेने यहाँ आऊँगा । यदि मैं वनचभंग करूँ, तो मुझे रात्रिभोजन का पाप लगें।" शास्त्रों में रात्रि भोजन को महापाप एवं नरक का द्वार कहा गया है।
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