Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 64
________________ xn Jain Education International 00000 यदि वह आपकी नहीं हो सकती तो... धिक्कार है आपके अर्थहीन जीवन पर !" रावण के समक्ष शूर्पणखा ने जो प्रलाप किया, उसने एक महाविध्वंसक संघर्ष एवं रावणविनाश के बीज बोयें। अपनी प्रिय भगिनी की बातें सुनकर रावण की वासना उत्तेजित बनी। वह तत्काल उठकर पुष्पक विमान में दंडकारण्य आया। वहाँ सीता के समीप उसने क्षात्रतेज से दमकते, बलवान राम को देखा। अग्नि को देखते ही वनव्याघ्र भयाकुल बनता है, वैसे ही रावण का हृदय अतुल पराक्रमी राम को देखते ही कॉपने लगा। कुछ दूर जाकर उसने अवलोकिनी विद्या का स्मरण किया। विद्या तुरंत ही दासी की तरह उसके सामने आकर खड़ी रही। रावण ने अनुरोध किया, "मैं सीता का अपहरण करना चाहता हूँ, आप मेरी सहायता करें।” विद्या ने कहा "राम ने लक्ष्मण से कहा है कि महासंकट के समय वे सिंहनाद करें। अतः सिंहनाद करके राम को दूर हटाया जा सकता है, ताकि सीता का अपहरण हो सके।" रावण ने विद्या को कहा कि, “आप ही सिंहनाद कीजिए।" उसके कथनानुसार विद्या ने जब सिंहनाद किया, तब राम को संभ्रम हुआ कि, “हस्तीमल्ल के समान मेरा अनुज अपराजित है, किंतु यह सिंहनाद तो संकट का संकेत कर रहा है। अतः क्या किया जाए ?" इतने में सीता ने कहा, “आर्यपुत्र ! शीघ्र जाईये व अपने अनुज को बचाईये। अन्यथा वे चौदह सहस्त्र सुभट उनके शरीर के खंड खंड कर देंगे।" राम सत्वर युद्धभूमि की दिशा में चल दिए। राह में अनेक अपशकुन हुए, किंतु उन संकेतों को अनदेखा कर राम अपने अनुज की रक्षा के लिए दौडे। रावण द्वारा सीता का अपहरण रामचन्द्रजी के निर्गमन के पश्चात् रावण सत्वर विमान से उतरा व आंसू बहाती हुई सीता को उठाकर विमान में बिठा ले गया। सीता का रुदन सुनकर जटायु मनोमन बोला, “हे स्वामिनि ! आप इस मायावी राक्षस से कतई न डरें। मैं एक ही पल में आपको इससे मुक्त कराता हूँ।" मनोमन उसने रावण से कहा, “हे मायावी राक्षस ! कापुरुष की भाँति एक असहाय अबला को उठाकर कहाँ जा रहा है ? सावधान...” इतना कहकर उसने रावण पर आक्रमण किया। For Personal & Private Use Only 51 www.jainelibrary.org

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