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रावण द्वारा किए उपसर्गादि सर्व वृत्तान्त जानकर प्रातःकाल में विभीषण सीता के समीप आकर बोला, "हे भद्रे ! आप कौन हैं ? किसकी स्त्री हो ? कहाँ से आई हो ? आपको यहाँ पर कौन लाया है? आप निःशंक, निर्भय होकर मुझसे समस्त बात कहिए। मैं परस्वी के लिए सहोदर समान हूँ।" तब सीताजी ने उसे अपने शैशव से लेकर अपहरण तक सभी बातें निष्कपट भाव से कही फिर विभीषण रावण से मिलकर बोला, "भ्राता ! हमारे कुल का क्षय अब निश्चित है। क्या आपको उस ज्ञानी के कथन का विस्मरण हुआ, जिसने भरी सभा में आपसे कहा था कि दशरथ व जनक राजा की संताने आपके मृत्यु का निमित्त बनेंगी ?" जब तक राम अपने अनुजसमेत यहाँ आकर लंका का विध्वंस न करें, आप सीताजी को सम्मानसहित राम को लौटा दीजिये।" कोपायमान होकर रावण बोला, "हे कायर! क्या तुम मेरे भुजाबल व पराक्रम से अपरिचित है ? साम, दाम, दंड, भेद नीतियों का विनियोग करके मैं सीता को अपनी पत्नी बनाकर ही रहूँगा । यहाँ आने वाले राम-लक्ष्मण तो यमराज का भक्ष्य बनेंगे ।"
बिभीषण ने कहा, “विधि की लीला विचित्र है । अन्यथा दशरथ राजा का मैंने वध किया, इसके उपरांत भी वह जीवित है। इस सत्य का क्या स्पष्टीकरण संभव है ? होनी को कोई भी टाल नहीं सकता, यह सत्य है। आप स्वघात तो करेंगे ही, परंतु भविष्य में आनेवाली अपनी पीठियाँ भी चिरकाल तक निंदा का विषय बनेगी। मैं आपका अनुज हूँ, भक्त ! आप मेरी विनति पर अवश्य विचार
करें"
बिभीषण की भावभीनी विनति को सुना अनसुना कर रावण सीता समेत पुष्पक विमान में विहरने के लिए चला गया। उसने सीता को क्रीडास्थान, उद्यान, उपवन, वाटिकाएँ, निर्झर, रत्नपर्वत, स्वर्ग से सुंदर रतिभवन आदि दिखाये। अपने राजवैभव का प्रदर्शन कर सीता का प्रेम प्राप्त करना उसका हेतु था। परंतु सती सीता के मन में न क्षोभ उत्पन्न हुआ, न अनुराग
रावण की वासना का निंदनीय उद्रेक देखकर विभीषण ने कुलप्रधानों को बुलवाकर उनके साथ विचार विमर्श किया। वह बोला, "हे कुल प्रधानो जिस प्रकार ! मिध्यादृष्टि व्यक्ति सबै धर्म को मानने के लिए तत्पर नहीं होता, वैसे ही वासना का दास बना मेरा भाई सत्य का स्वीकार नहीं कर रहा है हनुमान इत्यादि कई राजा राम के न्यायी पक्ष में हैं। अतः ज्ञानीद्वारा जिसकी भविष्यवाणी
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57 हो चुकी थी, वह कुलक्षय होनेवाला है। किंतु वर्तमान समय में हम योग्य दिशा में पुरुषार्थ करें, तो कुलक्षय टाला जा सकता है।" इस प्रकार विचार-विमर्श कर बिभीषण ने किले पर आशालिका विद्या व यंत्रादि का आरोपण कराया, क्योंकि योग्य मंत्री अपने विचार रूपी नेत्रों से भविष्य देखते हैं।
19 हनुमान - सीता साक्षात्कार
राम के पास सुग्रीव
इस ओर सीता का विरह सहना राम के लिए दुष्कर बना। लक्ष्मण, सुग्रीव के प्रासाद पहुँचे व उन्हें धमकाने लगे, "अपना काम निकलवाकर आप यहाँ निश्चित होकर बैठे हैं ? वहाँ वृक्ष के तले बैठे राम के लिए विरह का एक दिन एक वर्ष के समान हो चुका
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