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ही शांत क्यों हुआ?'' तब मुनिराज ने उस पक्षी के पूर्वजन्म की घटना सुनाई। उसे सुनते ही जटायु ने पुनः मुनि के चरणों में प्रणाम किए और धर्मश्रवण से मांसत्याग व रात्रिभोजन त्याग का पच्चक्खाण लिया। मुनिराज ने राम से कहा, “आज से यह पक्षी आपका साधर्मिक हो चुका है। अतः इसकी सारसंभाल का उत्तरदायित्व आपके स्कंधों पर है।" इतना कहकर मुनियों ने आकाशगमन किया। राम ने लक्ष्मण, सीता व जटायु को अपने साथ रथ में बिठाया व आगे रवाना हुए।
रावण की बहन शूर्पनखा का ब्याह खर नामक राजा के साथ हुआ था। उसके शंबूक व सुंद नामक दो पुत्र थे। पिता की इच्छा के विरुद्ध शंबूक दंडकारण्य में सूर्यहास खड्ग की साधना करने गया था। बाँस की झाडी वाली गुफा में बारह वर्ष व सात दिन साधना करने से ही सूर्यहास खड्ग सिद्ध होता है। शंबूक ने बारह वर्ष व चार दिन की साधना पूर्ण की। साधना संपन्न होने में अब केवल तीन दिन शेष थे। साधना के कारण सूर्यहास खड्ग आकाश में प्रगट हुआ।
सीता का अपहरण
झाडी की गुफा में रहे शंबूक की गर्दन लक्ष्मण द्वारा कट गई। वनक्रीडा करते करते लक्ष्मण उस स्थान पर पहुंचे, जहाँ चारों दिशाओं मे किरण बिखरती थी। उन किरणों से व्याप्त सूर्यहास खड्ग देखते ही उनके मन में कुतूहल जगा। वैसे, नया शस्त्र देखते ही क्षत्रिय के मन में उसे पाने की व उसका प्रयोग करने की तीव्र इच्छा जगती है। लक्ष्मण ने खड्ग प्राप्त किया व बाँस की झाडीवाली गुफा पर प्रहार किया। प्रहार करते ही शाखा से लटके हुए शंबूक का मस्तक कट कर धरती पर गिरा, मस्तकविहीन कबंध अभी भी शाखा पर लटक रहा था।
Jain जटायु के पूर्वजन्म के लिये पढिये परिशिष्ट क्र. ४
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