SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 pom शांति स्नात्र अषाढ शुक्ल अष्टमी के शुभ दिन दशरथराजा ने धूमधाम से अष्टान्हिका चैत्य महोत्सव का आयोजन किया। इस अवसरपर उत्तमोत्तम पूजासामग्री के साथ शांतिस्नात्र महापूजा भी करवाई। ABOUNTRIAL DANTIMATERN शांतिस्नात्र संपन्न होते ही अंतःपुर के मुख्यअधिकारी कंचुकी के द्वारा शांतिस्नात्र का जल मुख्यमहिषी पट्टरानी कौशल्या को सर्वप्रथम भेजा गया । अन्य रानियों के प्रासादों में दासियों द्वारा स्नात्रजल भेजा गया। सामान्यतः कंचुकी वृद्ध पुरुष ही होता है। राजा दशरथ के अंतःपुर का कंचुकी भी वृद्धत्व के कारण धीरे-धीरे चल रहा था । अतः वह पट्टरानी के प्रासाद में शीघ्र न पहुँच पाया। युवा दासियों ने दौडदौड कर अन्य रानियों के प्रासादों में स्नात्रजल शीघ्र पहुंचा दिया। कौशल्या द्वारा आत्महत्या का प्रयास स्नात्रजल सबसे पूर्व न मिलने के कारण महारानी कौशल्या दुःखी होकर विचार करने लगी- 'मैं तो राजमहिषी हूँ.. फिर भी शांतिस्नात्र का जल सबसे पहले अन्य रानियों को पहुँचाया गया। हाय... कितनी मंदभागिनी हूँ मैं ! स्वमान का ध्वंस होने पर जीवित रहना मृत्यु से भी अधिक दुःखद है। अब मेरे लिए आत्महत्या करना ही उचित है।"क्रोधावेश के कारण कौशल्या ने विवेकशक्ति खो दी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy