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स्नात्र जल लेकर कंचूकी का आना
राजा कुछ कहे इसके पूर्व वृद्ध कंचुकी स्नात्र जल लेकर वहाँ आ पहुँचा। फौरन दशरथ राजा ने महारानी कौशल्या के मस्तक पर शांतिस्नात्र के जल का अभिसिंचन किया और फिर कंचुकी से पूछा, “सब से पहले तुम्हें ही स्नात्रजल दिया था, तो यहाँ पहुँचते पहुँचते तुम्हें इतना विलंब कैसे हुआ?" कंचुकी ने कहा- “आपका कथन सत्य है - सबसे प्रथम स्नात्रजल मुझे ही दिया गया था। फिर भी मुझे विलंब हुआ। इसमें मेरा कोई दोष नहीं है - अपराधी तो मेरी यह वृद्धावस्था है। मेरा शरीर अब जवाब दे चुका है। गात्र गात्र शिथिल हो चुका है। यदि आप इस वृद्ध शरीर का एक बार अवलोकन करेंगे, तो ज्ञात होगा कि आपका अपराधी कौन है?"
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