Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ 14 अवंति प्रदेश में परोपकारी राम, सौमित्र एवं जानकी का प्रवेश अयोध्या की सीमाओं से निकलकर चित्तौड होकर राम, लक्ष्मण एवं सीता ने अवंति देश में प्रवेश किया। यात्रा में सीता काफी थकी थी। अतः एक वटवृक्ष की छाया में वे सब विश्राम करने के लिए बैठ गए चारों दिशाओं में विहंगावलोकन करने पर उन्हें ज्ञात हुआ जैसे यह प्रदेश अभी अभी उजड़ गया हो। कुतूहलवशात् राम ने एक पथिक से इसका कारण पूछा, तब पथिक ने कहा कि "अवंति प्रदेश में सिंहोदर नामक राजा है, उसका सामंत वज्रकर्ण दशांगपुर में राज्य करता था। उसने प्रीतिवर्धन मुनिराज से नियम लिया कि वह अरिहंतप्रभु एवं साधु के अलावा अन्य किसी को प्रणाम नहीं करेगा। किंतु सामंत राजा होने के कारण उसे सिंहोदर राजा को प्रणाम करना पड़ता था। अतः उसने भगवान मुनिसुव्रतस्वामी की मूर्ति, अपनी मुद्रिका (अंगुठी) में बनवाई। जब कभी वह राजा को नमस्कार करता, तब उनके नेत्र मुद्रिकास्थित मुनिसुव्रतस्वामी की मूर्ति पर स्थिर रहते। वह वीतराग प्रभु को बद्धांजली मुद्रा से प्रणाम करता और राजा मानता कि वज्रकर्ण उसे ही प्रणाम करता है। इसका लाभ यह था कि न सामंत का नियमभंग होता, न राजा के अभिमान को ठेस पहुँचती। एक दिन सिंहोदर राजा को यह वास्तविकता ज्ञात हुई। वह शुद्ध भक्ति को कपट समझ बैठा, Jain Education International उसका क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो गया व उसने वज्रकर्ण सामंत की हत्या करने का प्रण किया। एक श्रावक द्वारा वज्रकर्ण को इस बात का पता चला और उसने सिंहोदर राजा से कहलवाया, मुझे मिथ्या अहंकार नहीं है, किंतु मैं नियम में बद्ध हूँ, अतः आपको प्रणाम नहीं करता। यह सुनते ही सिंहोदर राजा ने दशांगपुर को घेर लिया है। अतः प्रजाजन बाहर चले जाने से यह बाहरी प्रदेश उजड़ा हुआ दिखता है।” यह सुनकर कौशल्येय राम, लक्ष्मण व सीता दशांगपुर आए। राम ने लक्ष्मण को सिंहोदर राजा की सभा में भेजा। उन्होंने सिंहोदर राजा से कहा, "हे राजन् ! आपका सामंत वज्रकर्ण अभिग्रह के कारण आपके समक्ष नतमस्तक नहीं होता। अतः आप से अनुरोध है कि उन पर क्रोध न करें। यह राजा भरत का संदेश है।" भरत का संदेश ! यह सुनते ही सिंहोदर राजा क्रोधित हुआ । उसने उच्च स्वर में कहा, "वज्रकर्ण का पक्षपात करनेवाला यह भरत कौन है ? यह मैं नहीं जानता और नहीं मैं उस मूर्ख को जानता हूँ जो उसका संदेशवाहक बनकर मेरे समक्ष आने का दुःसाहस कर बैठा है।" लक्ष्मण द्वारा बंदी बनाया गया सिंहोदर राजा राम के समक्ष 41 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142