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अपहरण के पश्चात् ही उसका हृदय शीत होगा? अरे सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी स्वेच्छा से कन्यादान करता है। हमें इतनी भी स्वतंत्रता नहीं है कि हम अपनी इच्छानुसार सीता का विवाह कर सकें । यदि राम धनुष्य पर प्रत्यंचा नहीं चढ़ा पाये, तो निश्चित ही सीता का पति कोई अन्य बनेगा।"
है? इन देवधनुष्यों को वे लता की भाँति उठाएँगे और उन पर प्रत्यंचा चढाएँगे। सीता का विवाह केवल राम के साथ होगा। मैंने युद्धभूमि में राम को देखा है। अतः मुझे विश्वास है कि विजयश्री राम के ही गले में वरमाला पहनाएगी।" इसके पश्चात् जनक राजा ने एक विशाल मंडप बनवाया । धनुष्यद्वय की मंडप में स्थापना की गयी। जनकराजा ने दूरसुदूर के महाराज, युवराजों को निमंत्रण भेजे । वे समस्त, मिथिला पधारे और मंडप में यथास्थान बिराजमान हुए।
तब जनकराजा ने उन्हें आश्वासन देते कहा, ''प्रिये..! आप चिंता न करें। आद्य जिनेंद्र के वंशज राम के लिए कौनसी बात अशक्य
सीता का स्वयंवर
दिव्य वस्त्रालंकारों से मंडित युवराज्ञी सीता ने स्वयंवर मंडप में प्रवेश किया। राम का स्मरण करते हुए उन्होंने धनुष्यद्वय की पूजा की। फिर वे अपने करकमलों में वरमाला धारण किये सलज्ज एवं स्वस्थ रूप मंडप में खड़ी रही। सीता को देखते ही भामंडल की लालसा उत्तेजित हो गई, वे, नारदजी की कथनी से कई गुणा अधिक सुंदर थी। राजा जनक ने द्वारपालद्वारा घोषणा करवाई कि जो नरशार्दूल धनुष्यद्वयी में से किसी भी एक पर प्रत्यंचा लगाने में यशस्वी होगा, वही सीता का पाणिग्रहण करेगा। यह घोषणा सुनते ही युवराज, राजकुमार क्रमशः धनुष्य के नजीक जाने लगे, पर धनुष्य उठाने का साहस तक कोई भी कर न पाया। क्योंकि वे जाज्वल्यमान धनुष्य प्रखर अग्निशिखाएँ एवं फुत्कार करते हुए भयंकर विषधर सर्पो से परिवेष्टित थे। सीता के इच्छुक, साहस जुटाकर धनुष्य के समीप जाते तो थे, पर लज्जा से अधोमुख पुनः लौटकर अपने अपने स्थानपर बैठ जाते । चंद्रगति राजा यह सब देखकर स्मित कर रहे थे। उन्हें विश्वास था कि अंत में सीता केवल उनकी पुत्रवधू बनेगी। अब राम उठे... और धनुष्य की ओर चल दिये.. जनकराजा के हृदय की गति तेज हो गयी... वे विचार करने लगे कि "कहीं अन्य राजाओं की भाँति रामचंद्र भी धनुष्य उठाने में असफल हो जाए तो......?"
HEARNGA
ASSOMWASEE
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