________________
अ० ३ / प्र० २
श्वेताम्बर साहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा / १९१
1
रूढ़ार्थ शब्दों के व्युत्पत्तिमूलक अर्थ अर्थात् मूल मुख्यार्थ के अप्रचलित हो जाने से ही अनेक वैयाकरणों और काव्यशास्त्रियों ने रूढार्थ को ही मुख्यार्थ कहा है काव्यानुशासन के कर्त्ता प्रसिद्ध श्वेताम्बर वैयाकरण एवं काव्यशास्त्री 'कलिकालसर्वज्ञ' आचार्य हेमचन्द्र (१०८८ - ११७२ ई०) लिखते हैं
"कुशलद्विरेफद्विकादयस्तु साक्षात्सङ्केतविषयत्वान्मुख्या एवेति न रूढिर्लक्ष्यस्यार्थस्य हेतुत्वेनास्माभिरुक्ता ।'
२८
अनुवाद - " कुशल, द्विरेफ, द्विक आदि शब्दों के क्रमशः दक्ष, भ्रमर, काक (कौआ) आदि अर्थ ( रूढ़ = लोकप्रसिद्ध होने के कारण ) साक्षात् संकेत के विषय होते हैं ( मुख्यार्थबाध, तात्पर्यानुपपत्ति आदि के द्वारा उनका परम्परया बोध नहीं होता, साक्षात् बोध होता है), अतः वे मुख्यार्थ ही हैं. ( लक्ष्यार्थ नहीं)। इसीलिए हमने (आचार्य हेमचन्द्र ने) “मुख्यार्थबाधे निमित्ते प्रयोजने च भेदाभेदाभ्यामारोपितो गौणः " (काव्यानुशासन १/१५) इस सूत्र में 'रूढि' को लक्ष्यार्थ का हेतु नहीं बतलाया ।'
"1
अभिप्राय यह कि व्युत्पत्ति के अनुसार 'कुशल' शब्द का अर्थ है 'कुश तोड़कर लाने वाला व्यक्ति', द्विरेफ का अर्थ है 'दो रेफ या दो रकारवाला शब्द' जैसे रुचिर, 'भ्रमर' आदि शब्द तथा 'द्विक' का अर्थ है 'दो ककारवाला शब्द' जैसे 'कनक', 'काक' (कौआ) आदि शब्द । किन्तु ये शब्द क्रमशः दक्ष व्यक्ति, भ्रमर - नामक प्राणी एवं काक- नामक पक्षी के अर्थ में रूढ़ (प्रसिद्ध) हैं, अतः मम्मट आदि काव्यशास्त्रियों का मत है कि 'कुशल' आदि शब्दों का मुख्यार्थ (व्युत्पत्ति - मूलक अर्थ ) बाधित होने पर उनसे 'दक्ष' आदि अर्थों का बोध होता है, अतः 'दक्ष' आदि अर्थ लक्ष्यार्थ हैं।
आचार्य हेमचन्द्र आदि वैयाकरण एवं काव्यशास्त्री इससे असहमत हैं। उनका कथन है कि शब्द का जो अर्थ रूढ़ या प्रसिद्ध होता है, वही साक्षात् संकेत का विषय होता है, अर्थात् उसी अर्थ की उस शब्द से बिना किसी व्यवधान के प्रतीति होती है। अतः रूढ़ार्थ ही मुख्यार्थ होता है। इसलिए यदि रूढ़ार्थ को लक्ष्यार्थ भी माना जाय तो अतिप्रसंगदोष उत्पन्न होगा । २९
वैयाकरणों और काव्यशास्त्रियों द्वारा रूढ़ार्थ को ही मुख्यार्थ माने जाने से सिद्ध है कि जिस शब्द में कोई अन्य अर्थ रूढ़ हो जाता है, उसका व्युत्पत्ति - मूलक मुख्यार्थ
२८. काव्यानुशासन - स्वोपज्ञटीका/अध्याय १/ सूत्र १६ - " मुख्यार्थसम्बद्धस्तत्त्वेन लक्ष्यमाणो लक्ष्यः । " २९. “इदमेव हि शब्दानां मुख्यानां मुख्यत्वं यत्साक्षात् सङ्केतविषयत्वम् । सङ्केते च रूढिरेव कारणम् । ततो यदि रूढिमपेक्ष्य लक्षणा प्रवर्तेत तदातिप्रसङ्गः स्यादिति । " शिवदत्त - काशीनाथकृत व्याख्या/ काव्यानुशासन/ अध्याय १ / सूत्र १४ - " साक्षात्सङ्केतविषयो मुख्यः । "
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
wwww.jainelibrary.org